Tuesday, September 14, 2010

इंद्रदेव के नये टूरिस्ट स्पॉट का मजा लीजिए...

कॉमनवेल्‍थ गेम्स शुरू होने से ठीक पहले दिल्ली को एक और टूरिस्ट स्पॉट मिल गया। इस नए टूरिस्ट स्पॉट पर लोग अपने पूरे परिवार सहित गाड़ियों में सवार होकर आ रहे हैं। इधर से गुजरते लोगों में भी दिल्ली के इस नये-नवेले टूरिस्ट स्पॉट को देखकर खुशी और हैरत का मिश्रित भाव है। हर कोई इसे जी भर के निहार लेना चाहता है, क्या पता फिर ऐसा नजारा कब देखने को मिले! ये भी नहीं पता कि मिलेगा भी या नहीं! एक बात तो तय मानी जा रही है कि कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने से पहले ही यह टूरिस्ट स्पॉट अपनी यह सुंदरता खो देगा। अब आप कहेंगे अमा यार गज़ब के इंसान हो। सरकार कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए सुंदरता-सुंदरता चिल्ला रही है और तुम इस टूरिस्ट स्पॉट की सुंदरता तब तक खत्म होने की बात कर रहे हो। दोस्तो इस नए टूरिस्ट स्पॉट का नाम आप सब जानते हैं। लेकिन आज तक यह आपके लिए नाक-मुंह सिकोड़ने वाला भर था। जी हां यमुना नदी की ही बात कर रहा हूं। जिसके पास से गुजरते ही आप नाक बंद करके मुंह सिकोड़ते हुए निकल जाते थे और जाते-जाते इसे गंदा नाला भी कह जाते थे।

आजकल आप यमुना पर बने किसी भी पुल से गुजरिए लोग पुल के किनारे गाड़ी लगाकर इसे ऐसे देखते हैं जैसे कह रहे हों कि ‘आ तुझे आंखों में भर लूं।’ यमुना में इतना पानी है कि इसने निचले इलाकों में लोगों के घरों में भी घुसपैठ कर दी है। इस सब के बावजूद यमुना की जो सुंदरता अभी दिख रही है उसे देखते हुए लगता है कि काश! यह सुंदरता हमेशा बनी रहती। अब आपको याद होगा, सरकार पिछले कई सालों से यमुना के आसपास सौंदर्यीकरण क्यों कराना चाहती थी। लेकिन ये सरकार के बूते की बात नहीं है, ऐसा ही कुछ सोचकर इंद्रदेव ने अपने नलके खुले छोड़ दिए हैं। जितने सालों से सरकार इस इलाके की सुंदरता की बात कर रही है, अगर ऐसा कर लिया जाता तो न जाने क्या क्या हो जाता। रेहड़ी, फल, चाट, आइसक्रीम वालों से सरकार को ढ़ेर सारा राजस्व हासिल होता और किसी भ्रष्टाचारी की जेब भी गरम हो जाती। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ, जिस यमुना को इंद्रदेव ने खूबसूरत बनाया है उसकी सुंदरता से कुछ राजस्व गरीब लोगों के पेट की आग बुझाने के काम आ रहा है जो वहां पर छोटी-छोटी चीजें बेचने के लिए आ गए हैं। अच्छा ही है गरीब का पेट भर रहा है वरना सरकार इसका सौंदर्यीकरण करती तो किसी भ्रष्टचारी की जेब भरती।

अभी आखिरी कुछ दिन बचे हैं, अगर आप अभी तक इस नए टूरिस्ट स्पॉट पर नहीं गए हैं तो तुरंत जाइए। क्या पता इंद्रदेव कब अपने नलकों पर ताला लगा दें। हो तो यह भी सकता है कि सरकार यहां पर भी एंटरटेनमेंट टैक्स लगाकर आपकी गाढ़ी कमाई और गरीब के पेट की रोटी छीनकर किसी भ्रष्टाचारी की जेब भरने लग जाए। तो जल्दी कीजिए… मिलते हैं ‘बस यूं ही’ इसी नए टूरिस्ट स्पॉट पर।

Saturday, September 11, 2010

इस एक मोहरी के सजदे धर्म व कट्टरता

ईद का मौका था, और एक बार फिर मैं अपने एक परिचित के घर पर सेवईंया खाने पहुंच गया। आपको शायद याद हो, होली के मौके पर मैंने मोहम्‍मद उमर के होली खेलने के वाकए का आपसे जिक्र किया था। उस समय जैसा ही अनुभव मोहम्‍मद उमर को होली खेलते हुए देखकर हुआ था वही मैं हर बार ईद पर सेवईंया का लुत्‍फ लेते हुए भी करता हूं। लेकिन इस बार मैं आपसे एक खास बात का जिक्र करना चाहता हूं। एक मोहरी ने मेरा ध्‍यान पिछले काफी समय से अपनी ओर खींचा हुआ था। सोचा इस बार उस मोहरी का जिक्र आप लोगों से कर ही लिया जाए। अरे सॉरी दोस्‍तो, शायद आप में से कुछ लोग मोहरी का मतलब न समझ पाए हों। असल में पहाड़ी (कुमाउंनी भाषा) में खिड़की को मोहरी कहा जाता है। एक छोटी सी मोहरी का जिक्र आपसे इस प्‍लेटफॉर्म पर क्‍यों? अगर आप भी यही सोच रहे हैं तो उसका जवाब तो ऊपर हैडिंग में ही है। क्‍योंकि इस एक मोहरी के सजदे धर्म और कट्टरता जाए। यह मोहरी हमारे समाज की उस छोटी और संकीर्ण मानसिकता को मुंह चिढ़ाती है, जो दो समुदायों में आपसी वैमन्‍स्यता फैलाती है।

इस मोहरी के एक ओर रहता है अपने धर्म को अपनी जान समझने वाला एक मुस्लिम परिवार और दूसरी ओर पूजा पाठ में रमा रहने वाला हिन्‍दू परिवार। ये एक मोहरी इन दोनों परिवारों को ठीक वैसे ही जोड़ती है जैसे आप और मैं। हर छोटी बड़ी खुशी और दुख में दोनों परिवार एक दूसरे का पूरा साथ देते हैं। इन दोनों परिवारों को एक दूसरे से बात करने के लिए घर से बाहर या एक दूसरे के घर नहीं जाना पड़ता। यह दोनों परिवार अपने कमरों में ही रहकर एक दूसरे से बड़े ही आराम से मोहरी के आर पार खड़े होकर बात करते हैं। जब भी किसी एक के घर में किसी चीज की कमी होती है तो रात-बिरात दूसरे से बात करने में कोई हिचक नहीं होती। कभी कभी तो दोनों परिवारों को देखकर लगता ही नहीं कि ये दोनों अलग अलग समुदायों से हैं। दोनों परिवार एक दूसरे के त्‍योहारों और घर के कार्यक्रमों में पूरे मन से शामिल होते हैं। इन दोनों परिवारों को देखकर लगता ही नहीं कि दोनों अलग अलग समुदायों से हैं। यह मोहरी ऐसे ही लगती है जैसे धर्म के ठेकेदार ऊंची ऊंची दीवारें चिनवाने पर आमादा हैं और ये दोनों परिवार उन दीवारों के बीच खिड़कियां निकालकर प्‍यार और सिर्फ प्‍यार की बयार बहाना चाहते हैं। इनकी इस मोहरी के मैं सजदे जाऊं और इनके बीच के इस प्‍यार और भाईचारे को किसी की नजर न लगे।

Friday, August 27, 2010

फिर चली निशाना अ-भेद कुख्यात मिसाइल

एक मिसाइल पिछले दो-तीन सालों में मशहूर हुई है। अजी मशहूर क्या, कुख्यात हुई है। ऐसे तो इसकी मारक क्षमता पर किसी को कोई संदेह नहीं है पर यह आज तक अपने लक्ष्य को न भेद पाई हो। इस मिसाइल के शिकार अमेरिका से लेकर, भारत, पाकिस्तान, चीन, इजराइल, स्वीडन और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के प्रमुख तक हो चुके हैं। इस मिसाइल की सबसे खास बात यह है कि भले ही अब तक बमुश्किल एक बार ही यह अपने लक्ष्य को भेद पाई हो, लेकिन इसने घाव बड़े गहरे होते हैं। आज तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार ही इसने अपने लक्ष्य को भेदा है और उस बार इसके शिकार हुए थे स्वीडन में इजराइल के राजदूत बेनी डेगन। पांच फरवरी, 2009 को स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में एक समारोह के दौरान एक महिला ने डेनी पर यह मिसाइल दागी, जो सीधे जाकर उनके सीने पर लगी।

जी हां दोस्तों! आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। यहां मैं उसी मिसाइल की बात कर रहा हूं जिसका आविष्कार एक इराकी पत्रकार मुंतजिर अल जैदी ने किया और पहली बार उस समय के दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति कहे जाने वाले जार्ज डब्ल्यू बुश पर इस मिसाइल को दागा था। इसके बाद तो यह मिसाइल इतनी कुख्यात हो गई कि दुनियाभर में इसका डंका बज गया। भारत में ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी चिदंबरम, पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से लेकर कई छोटे-बड़े नेता व अन्य लोग इसके शिकार हुए।

ताजा वाकिया जम्‍मू एंव कश्‍मीर का, जहां स्‍वतंत्रता दिवस के मौके पर सूबे के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला पर यह मिसाइल दागी गई। उमर राष्‍ट्रध्‍वज के सम्‍मान में खड़े थे तभी उन्‍हीं के एक मातहत पुलिसकर्मी ने उन पर यह मिसाइल दाग दी। गनीमत यह थी कि इस बार भी मिसाइल निशाने से चूक गई। इसके बाद कई तरह की बातें कही जाने लगी, पुलिसकर्मी को बर्खाश्‍त भी कर दिया गया। सबसे अलग बयान दिया उमर के पिता और पूर्व मुख्‍यमंत्री फारुख अब्‍दुल्‍लाह ने। उन्‍होंने कहा कि अब मेरा बेटा जार्ज बुश, पी चिदंबरम, मनमोहन सिंह, आसिफ अली जरदारी, वेन जियाबाओ जैसे लोगों की श्रेणी में आ गया है। पिता को गर्व हो भी क्‍यों न, यह क्‍लब है भी तो खास 'जूता खाओ क्‍लब।'

हाल ही में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर इस मिसाइल को दागा गया, लेकिन इस बार भी यह मिसाइल अपने लक्ष्य को नहीं भेद पाई। मिसाइल का शिकार हमारे दूसरे पड़ोसी कम्युनिस्ट मुल्क चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भी बने। दो फरवरी, 2009 को इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भाषण के दौरान जियाबाओ को रोकते हुए एक व्यक्ति उठा और उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए एक मिसाइल दाग दी, एक बार फिर मिसाइल निशाने से चूक गई और जियाबाओ से कुछ दूरी पर जा गिरी। मजेदार बात तो यह है कि इस मिसाइल के निर्माता मुंतजिर अल जैदी खुद भी इस मिसाइल के शिकार बन चुके हैं।

द अल-बगदादिया टेलीविजन चैनल के संवाददाता रहे जैदी के पूर्व मालिक ने बुश पर इस मिसाइल का परीक्षण करने पर उसके लिए चार बेडरूम वाला एक नया घर बनवाया और एक कार भी खरीदी। इसके अलावा पूरे अरब वर्ल्ड में जैदी ने वाहवाही बटोरी और उसके लिए उन्हें कई तोहफों से भी नवाजा गया।

इस मिसाइल ने पाकिस्तान में भी खूब गुल खिलाए। कराची के एक छात्र ने आठ अक्टूबर, 2009 को एक समारोह के दौरान अमेरिकी पत्रकार क्लिफोर्ड डी मे पर मिसाइल आजमाई। क्लिफोर्ड रिपब्लिकन हैं और जॉर्ज बुश प्रशासन के कार्यकाल के दौरान पार्टी के सक्रिय सदस्य समझे जाते थे। इस बार भी मिसाइल रास्ता भटक गई।

तुर्की के शहर इस्तानबुल में 30 सितंबर, 2009 को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के प्रमुख डोमनिक स्त्रास काह पर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के एक छात्र ने यह मिसाइल आजमाई। मिसाइल फिर रास्ता भटक गई और डोमनिक से करीब एक मीटर की दूर जा गिरी।

भारत में एक बार ऐसे तो यह मिसाइल अपने निशाने से चूक गई, लेकिन इसकी गंभीर चोट किसी दूसरे पर असर दिखाने में कामयाबी रही। गृहमंत्री चिदंबरम पर जैसे ही यह मिसाइल दागी गई उसके कुछ दिन बाद टाइटलर को लोकसभा के लिए चुनावी टिकट गंवानी पड़ गई। अपने प्रधानमंत्री कैप्टन कूल (मनमोहन सिंह) पर भी गुजरात के अहमदाबाद में 26 अप्रैल, 2009 को एक चुनावी रैली यह मिसाइल दागी गई।

अपने पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी पर तो दूसरे दर्जे की मिसाइल दागी गई, लेकिन वह भी अपने लक्ष्य से भटक गई। आडवाणी पर 16 अप्रैल, 2009 को पार्टी के ही एक कार्यकर्ता ने चप्पल मिसाइल फेंकी जो निशाने पर नहीं लगी।

बेटे को नौकरी नहीं मिली, इसलिए एक शिक्षक ने हरियाणा में स्थानीय सांसद नवीन जिंदल पर मिसाइल दागी। इस मामले में सबसे ज्यादा स्याण पंथी दिखाई अपने मोदी भाऊ नरेन्द्र मोदी ने। उन्होंने एंटी मिसाइल प्रणाली विकसित की और महाराष्ट्र के धुले में लोकसभा प्रचार के दौरान मंच के सामने एक वॉलीबॉल नेट बंधवा दिया। मिसाइल ने कई शिकार किए हैं। भले ही वह निशाने पर एक ही बार लगी हो, लेकिन उसकी गूंज जार्ज बुश से लेकर जगदीश टाइटलर तक हर कोई महसूस करते हैं।

जय हो जूता मिसाइल, अब देखते हैं अगला निशाना कौन बनता है और इस बार मिसाइल स‍टीक निशाना लगा पाती है कि नहीं।

Monday, July 26, 2010

कितने बाप हैं तेरे

'कितने बाप हैं तेरे' अरे नहीं, ये सवाल मेरा नहीं उस ड्राइवर का था, जो हमें टाइगर फॉल दिखाने के लिए ले गया था। सवाल सुनकर मैंने सोचा अक्‍सर लोग बच्‍चों को छेड़ने के लिए ऐसा सवाल कर देते हैं, सो उसने भी बस यूं ही पूछ लिया होगा। लेकिन उस छोटे से नन्‍हें गाइड ने जवाब दिया दो बाप। मुझे कुछ अजीब सा लगा और मन में एक सवाल भी अंकुरित हो गया, इसलिए ड्राइवर से पूछ ही लिया इसका क्‍या मतलब हुआ। तो ड्राइवर ने बताया कि पहले यहां पांचाली प्रथा हुआ करती थी, अब विकास से प्रथा जाती रही। लेकिन अब भी कुछ पिछड़े इलाकों में यह प्रथा जिंदा है। (पांचाली प्रथा से उसका मतलब उस प्रथा से था जिसमें एक व्‍यक्ति एक औरत से विवाह करे तो उसके सभी भाईयों का विवाह भी उसी औरत से हो जाता था। यह प्रथा ठीक उसी तरह है, जैसे आध्‍यात्मिक महाग्रंथ महाभारत में पाचों पांडव द्रौपदी (पांचाली) के पति थे)।


खैर यह तो बात थी टाइगर फॉल से वापस लौटने पर हमारे साथ रहे छोटे से गाइड चेतन की, जिसे मैं छोटा चेतन कह कर पुकार रहा था। हिन्‍दुस्‍तान लखनऊ के एक्‍जक्‍यूटिव एडिटर श्री नवीन जोशी जी का blogs.livehindustan.com पर सुन किस्‍सा सारंगी नाम के ब्‍लॉग में कभी चकराता जाकर प्राण पाइए पढ़कर मैने मन बनया कि हनीमून के लिए चकराता ही जाना चाहिए। फिर क्‍या था हम जा पहुंचे हनीमून के लिए चकराता। आप कहीं जाएं और वहां कुछ अनजाना सा अनदेखा सा और ऐसा कुछ हो जाए जिसके लिए आप तैयार न हों तो वहां जाने का मजा दो गुना हो जाता है, भले ही शुरु‍आत में कुछ परेशानी जरूर आती है। अभी ट्रेन हरिद्वार पहुंची थी और मैंने चकराता में उन महाशय को कॉल किया जिन्‍होंने हमारे रहने की व्‍यवस्‍था करनी थी। तभी महाशय ने बताया कि रहने की व्‍यवस्‍था तो नहीं हो पाई है, मैं कुछ व्‍यवस्‍था करता हूं तब तक आप देहरादून में रुकिए और सहश्रधारा देख आइए। मैंने अपनी पत्‍नी को बताया तो वो आग बबूला हो गई, लेकिन फिर मान भी गई और हम सहश्रधारा भी देख आए। देहरादून से आधे घंटे की दूरी पर सहश्रधारा में पाकृतिक गंधक जलश्रोत बह रहा है। खैर चकराता में व्‍यवस्‍था तो नहीं हुई और हमें अपने एक पत्रकार दोस्‍त की मदद से देहरादून में ही एक होटल में ठहरना पड़ा। अगले दिन उन्‍हीं चकराता वाले भाईसाहब से बात की तो उन्‍होंने चकराता में जगह होने से तो साफ मना किया लेकिन देहरादून से लगभग 40 किमी दूर विकासनगर में ठहरने की व्‍यवस्‍था जरूर कर दी। यहां से चकराता मात्र 55 किमी रह जाता है। विकासनगर में रात बिताकर अगले दिन एक प्राइवेट टैक्‍सी करके हम चकराता के लिए निकले और सच में यहां जाकर प्राण पा लिए। इतना सुंदर, ठंडा और प्‍यारा मौसम की बस जी खुश हो गया और मन ही मन कई बार नवीन जी को धन्‍यवाद दिया। चकराता में कुछ देर रुक कर ठंडे मौसम में मैगी खाई तो ऐसे लगा जैसे इससे पहले मैगी कभी इतनी टेस्‍टी थी ही नहीं। सच में यहां मैगी का स्‍वाद ही कुछ और था, शायद ये यहां के मौसम और बांज व देवदार की जड़ों से रिस रहे पानी का कमाल था।

चकराता से करीब 17 किमी की दूरी पर है टाइगर फॉल इतना सुंदर कि यहां से आने का ही मन न करे। सड़क मार्ग से 17 किमी जाने के बाद करीब डेढ़ किमी पैदल खड़ी ढ़लान पर उतरना था। गाड़ी रुकती इससे पहले ही एक छोटा सा करीब 9 साल का लड़का गाड़ी के पास आ गया और बोला मैं आपको टाइगर फॉल दिखाऊंगा और आपका सामान भी उठाऊंगा। इसके साथ ही उसने बताया कि किसी और को अपने साथ मत चलने दीजिएगा, मैंने बैग तो उसे नहीं पकड़ाया और हम उसके पीछे-पीछे चल दिए। वह रास्‍ते भर याद दिलाता रहा कि उसे 50 रुपए से लेकर 1000 रुपए तक गाइड के रूप में मिले हैं और वह स्‍कूल से आकर व छुट्टी के दिन यह काम करता है। टाइगर फॉल तो सच में वैसा ही है जैसे नवीन जी ने अपने लेख में कहा है, देखकर यहां से हटने का मन नहीं किया। हम दोनों ने यहां खूब मस्‍ती की और तन से लेकर मन तक तर होने के बाद जब ठंड तेज लगने लगी तो कपड़े बदले और धूप में आ गए। वहीं पास में एक बूढ़ा व्‍यक्ति झाड़ फूंस जलाकर चाय बना रहा था, एक चाय मैंने भी मंगवा ली। वैसे वह चाय ऐसी तो नहीं थी कि उसके बारे में कसीदे पढ़े जाएं लेकिन ठंड में अच्‍छी लग रही थी। डेढ़ किमी की चढ़ाई बैग लेकर चढ़ने की हिम्‍मत मेरी तो नहीं ही हुई, नई नवेली मेरी दुल्‍हन तो पहली बार पहाड़ गई थी। इसलिए बैग की जिम्‍मेदारी छोटा चेतन ने संभाल ली। सड़क पर पहुंचकर मैंने उसे 100 रुपए दिए लेकिन वह गाड़ी के पास ही खड़ा रहा, तभी ड्राइवर ने उससे पूछा कितने बाप हैं तेरे और उसने जवाब दिया दो। खैर चेतन से विदा लेकर हम वहां से चल दिए और डेढ़ महीने बाद भी छोटा चेतन याद आता है और टाइगर फॉल की याद फिर से तन मन को तरोताजा कर देती है।

एक प्‍यारा बहाना - बस यूं ही कुछ भी लिख दिया

बस यूं ही कुछ दिनों तक आपसे दूर हो गया था इसलिए 'बस यूं ही' पर आपसे मुलाकात नहीं हो पा रही थी। शादी और फिर हनीमून के बाद मैं एक बार फिर से आपसे मुखातिब हूं। वैसे हनीमून से आए हुए एक माह से ज्‍यादा का वक्‍त बीत चुका है, लेकिन ऑफिस से घर पहुंचकर कंप्‍यूटर के सामने बैठने का मन ही नहीं करता और ऑफिस में अपना ब्‍लॉग लिखना लगभग नामुमकिन है। खैर बहानेबाजी बहुत हो गई, लो जी आ गया हूं फिर से झेलो मुझे...................

Saturday, May 1, 2010

तनखा बढ़ा दो मेरी होता नहीं है गुजारा, थोड़ा लगा दो सहारा

तनखा बढ़ा दो मेरी,
होता नहीं है गुजारा
थोड़ा लगा दो सहारा।

ये मेरी अपने नियोक्‍ताओं से दरख्‍वास्‍त भी है और उनके सामने अपनी मजबूरी भी रो रहा हूं कि भई जो कुछ चिल्‍लड़ आप मुझे देते हो उससे अब गुजारा नहीं होता है। अप्रैल का महीना खत्‍म हो चुका है और इस गुजरे महीने में लगभग हर कोई इन लाइनों को गुनगुना रहा था। भई हम तो अब भी गुनगुना रहे हैं क्‍योंकि हमारी तनख्‍वाह तो अभी तक बढ़ी नहीं है। अब तो हमने ठान ली है कि जब तक बॉस हमारी डावांडोल होती अर्थव्‍यवस्‍था को सहारा नहीं लगाते तब तक उनके सामने इस गाने को न सिर्फ गुनगुनाएंगे बल्कि अपनी मोबाइल की रिंगटोन भी इसी गाने को बनाकर रखेंगे। ताकि जैसे ही कोई फोन आए तो बॉस को हमारी दरख्‍वास्‍त सुनाई पड़ जाए। अब तो सोच रहा हूं कि एक बार फोन आने पर न उठाऊं ताकि बॉस अच्‍छी तरह से हमारी परेशानी को समझ लें। वैसे रिंगटोन की बात निकली है तो उस पर बात आगे बढ़ाई जा सकती है। आजकल जिस तरह की रिंगटोन सुनने को मिल रही हैं उससे बहुत कुछ समझ में आता है। रिंगटोन ही नहीं कॉलर ट्यून भी बड़ी ही मजेदार सुनने को मिलती हैं आजकल। तो चलिए लगाते हैं रिंगटोन की दुनिया में गोता।

'तनखा बढ़ा दो मेरी' एक रिंगटोन तो आप सुन ही चुके हैं, ये तो खास बॉस के लिए बनाई गई है। इसी से मिलता जुलती एक और रिंगटोन जो आपको अनायास ही सुनने को मिल सकती है। रिंगटोन है - 'कसम खुदा की पैसा बहुत है, मगर मुझे प्‍यार चाहिए। ना बाई ना बाई, मुझे प्‍यार व्‍यार कुछ नहीं चाहिए मुझे सिर्फ पैसा चाहिए ऑनली पैसा ऑनली पैसा हा हा हा'। भई पैसे की महिमा है कोई उल्‍लू ही होगा जो प्‍यार की बात करेगा। प्‍यार न तो 48 रुपए किलो चीनी खरीद कर देगा और न ही 80 रुपए किलो तुअर की दाल, लेकिन पैसा ये सब दे देगा। भई हम जिस दौर में आज जी रहे हैं उसमें तो पैसा प्‍यार भी खरीद लेता है। न विश्‍वास हो तो देख लीजिए किसी अमीर बाप के बिगड़ैल, बेडौल और भद्दे से लड़के के पीछे कैसे लड़कियां या अमीर बाप की बेडौल और सारी खामियों से लैस लड़की पर भी लड़के फिदा रहते हैं। पैसा नहीं हो तो आपकी गर्ल फ्रैंड आपको छोड़ चली जाती है।

तो भईया एक बात गांठ बांध लो, ना बाप बड़ा न भईया, द होल थिंग इज दैट के भईया सबसे बड़ा रुपईया। अगर यही बात किसी के फोन की रिंगटोन के रूप में भी बजे तो हैरत में मत पड़ि‍एगा।

अगर अचानक आपको लगे कि किसी ने आपके पास में ही पानी का पूरा जग उड़ेल दिया है तो एक बार ध्‍यान से अपने आसपास के लोगों को देख लीजिए, हो सकता है किसी के मोबाइल पर ऐसी रिंगटोन लगी हो। वैसे कई बार मोबाइल की रिंगटोन आपको सपनों के दर्शन करा देती है। बाहर भीषण गर्मी है और आप तिलमिलाती गर्मी से बेहाल, अभी अचानक कोयल की आवाज सुनाई दे तो ये न समझ लेना कि आया सावन झूम के। बल्कि यह भी किसी के मोबाइल की रिंगटोन होगी, यह पहले मन में लाना भले ही सावन का महीना ही क्‍यों न हो। अकेली सुनसान सड़क पर चल रहे हैं और अचानक कोई इंसान आपके पास से होकर गुजरे तभी बच्‍चे के हंसने की आवाज आए, लेकिन बच्‍चा न दिखे तो भूत समझकर उल्‍टे पांव दौड़ने की बजाए एक बार ये सोच लीजिएगा कि ये भी मोबाइल की रिंगटोन हो सकती है। कभी सुनसान अंधेरी रात में अचानक बिल्‍ली की आवाज सुनाई दे तो कोई घोर अंधविश्‍वासी इसे कोई आत्‍मा समझ बैठे तो हैरत की बात नहीं, लेकिन आप ऐसा न समझें क्‍योंकि ऐसी रिंगटोन भी आजकल सुनने को मिल जाती हैं। एक और रिंगटोन जो मेरे समझ में नहीं आई लेकिन हो सकता है आप समझ जाएं, अगर ऐसा हो तो मुझे भी बताइएगा। यह रिंगटोन कुछ इस तरह है न्‍य न्‍य न्‍यो न्‍यो, अय्यो अय्यो आगे समझ में नहीं आया। अचानक से आपको चलते फिरते टीवी वाली छोटी सी बहु आनंदी की धुन 'छोटी सी उमर' भी किसी के मोबाइल पर बजते सुनाई दे सकती है।

क्‍या आपको याद है एक समय विवेक ओबराय और रानी मुखर्जी की हिट फिल्‍म साथिया की ट्यून, खासी हिट हुआ करती थी, उस समय आज की तरह गाना नहीं बल्कि सिर्फ ट्यून ही सुनाई पड़ती थी। इस बात का यहां कोई औचित्‍य तो नहीं है मैंने सोचा एक बार 2जी का वह जमाना याद कर लिया जाए जब ब्‍लैक एंड व्‍हाइट फोन भी अगर किसी के पास होता था तो उसका स्‍टेटस आपसे ऊपर होता था और एक वक्‍त आज है जब 8 सौ रुपए में रंगीन मोबाइल धक्‍के खा रहे हैं। अपनी बात बताऊं तो मैंने सबसे पहले 3000 रुपए खर्च करके सैकेंड हैंड नोकिया-3315 मोबाइल खरीदा। जिसे बाद में 8 महीने चलाकर एक बार फिर 2200 रुपए में बेच दिया था। मैंने भी साथिया फिल्‍म की उस रिंगटोन को अपने मोबाइल में काफी समय तक बजाया या यूं कहूं बजवाया था।

रिंगटोन और भी हैं जैसे बच्‍चे की हंसने की ट्यून रैप करके भी सुनाई पड़ जाती है। लेटेस्‍ट हिन्‍दी फिल्‍म का गाना, किसी के पसंदीदा सीरियल का टाइटल सॉन्‍ग या गब्‍बर की आवाज भी रिंगटोन में सुनने को मिलती है। तो भईया तैयार रहिए हो सकता है आपको भी ऐसी ही किसी रिंगटोन से सामना हो जाए।

Wednesday, April 21, 2010

थरूर, राठौर से पूछ लो, हंसी बहुत महंगी है

जी हां हंसी आजकल के दौर में बहुत महंगी हो चुकी है। इंसान अपनी रोजमर्रा की जिन्‍दगी में इतना व्‍यस्‍त हो गया है कि उसके पास हंसने का समय ही नहीं है। ऐसे में अगर वह हंसने के लिए वक्‍त निकाले तो हो सकता है एक वक्‍त का खाना कम पड़ जाए, क्‍योंकि हंसी के वक्‍त की ऐवज में तो वह काम से लदा हुआ है। ताकि अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। इससे भी बड़ी बात यह कि मुश्किल की घड़ी में हंसना तो विरले ही जानते हैं। लेकिन कुछ लोग हैं जो मुश्किल की घड़ी में भी हंसने की हिम्‍मत दिखाते हैं, लेकिन हंसी इन्‍हें भी महंगी ही पड़ती है! भई मैंने तो कुछ ऐसा ही देखा है, अगर आपने हंसी का किसी पर अच्‍छा असर देखा हो तो ये आपकी किस्‍मत।

शशि थरूर आईपीएल की दलदल में ऐसे फंसे कि आखिर उन्‍हें इस्‍तीफा देना पड़ा। लेकिन क्‍या आपको इससे पहले का पूरा वाकिया याद है? नहीं! तो कोई बात नहीं, मैं बता देता हूं। आईपीएल में चौथे साल से दो और टीमें कोच्चि और पुणे की टीमें भी जुड़ जाएंगी। इस साल इन दोनों की टीमों की निलामी हुई और कोच्चि की टीम से हमारे ट्विटर मंत्री के हित जुड़े होने की बात सामने आई। आईपीएल कमीश्‍नर ललित मोदी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शशि थरूर के बारे में ये बातें कहीं, साथ ही उनकी दोस्‍त सुनंदा पुष्‍कर के साथ ही उनके रिश्‍तों पर भी बात कही गई। विपक्ष के इस्‍तीफा देने के दबाव के बीच शशि थरूर को संसद में अपना पक्ष रखने को कहा गया। उन्‍होंने मुस्‍कुराते हुए अपनी बातें कहनी शुरू की लेकिन विपक्ष ने उनकी एक न चलने दी और आखिर उन्‍होंने लिखित में अपना बयान टेबल पर रख दिया। उनके लिए वह हंसी या मुस्‍कुराहट महंगी पड़ी और आखिर उन्‍हें इस्‍तीफा देना पड़ा।

राठौर तो याद है आपको, वही रुचिका के साथ छेड़छाड और उसके बाद उसे आत्‍महत्‍या के लिए उकसाने का दोषी हरियाणा का पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर। एक बार कोर्ट ने उसको राहत क्‍या दी, वह कोर्ट से बाहर मुस्‍कुराते हुए ऐसे निकला जैसे कोई जंग जीत ली हो। बस फिर क्‍या था, हमारा मीडिया आजकल कुछ ज्‍यादा ही सजग है और उसने मानो राठौर की हंसी पर ग्रहण लगा दिया। हंसी पर सवाल उठे तो राठौर साहब कभी पंडित नेहरू से प्रेरणा लेने की बात करने लगे तो कभी अपनी शक्‍ल को ही हंसी का गुनहगार बताने लगे। वैसे अब 'लाफिंग बुढ़ा' राठौर को समझ में आ गया होगा कि एक हंसी कितनी महंगी पड़ सकती है।

इंटरनेशनल क्‍वालिटी का ट्विटर मंत्री
एक बार फिर अपने ट्विटर मंत्री की बात करते हैं। वैसे मैं सच बताऊं तो मुझे उनका संसद में मुस्‍कुराते हुए विपक्ष के शब्‍द बाणों का सामना करने का अंदाज बेहद भाया। भई ये तो अपने अपने आराम का मामला है। वैसे ट्विटर के रास्‍ते उनकी विदेश राज्‍य मंत्री की कुर्सी से विदाई से पहले भी मंत्री जी कई बार अपने इंटरनेशनल क्‍वालिटी के नेता होने को साबित कर चुके हैं। सबसे पहले तो मंत्री पद संभालने के बाद पांचसितारा होटल में ठहरने को लेकर खूब बवाल हुआ। इसके बाद इकोनॉमी क्‍लास को 'कैटल क्‍लास' (हिन्‍दी में शब्‍दश: अर्थ जानवरों की श्रेणी और अंग्रेजी में गरीबों के लिए इस्‍तेमाल होने वाला एक आम शब्‍द) कहने के बाद भी खूब बवाल हुआ। संसद में जिस तरह से वे मुस्‍कुराते हुए विपक्ष के हृदय छेदी (भेदी) बाणों का सामना कर रहे थे उससे यह तो समझ में आता ही है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र (यूएन) में बाल झटकते हुए बोलने वाले हमारे पूर्व ट्विटर मंत्री हमारे सांसदों को भी मन ही मन कैटल क्‍लास कह कर हंस रहे हों। लेकिन हमारे कैटल क्‍लास मंत्रियों को न तो उनका बाल झटकना पसंद आया और न ही हंसना। तो भई मोरल ऑफ द स्‍टोरी ये है कि हंसी महंगी हो गई है, और आपने फिर भी हंसने को कोशिश की तो महंगी पड़ जाएगी। हंसी में थोड़ी 'चीन कम' चलेगी, इसमें हर्ज भी क्‍या है। कुछ समय पहले की ही तो बात है हमारे कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा भी था कि भई ज्‍यादा चीनी खाने से डायबटीज हो जाती है। हंसी के मामले में भी कुछ ऐसा ही है, इसलिए थोड़ा थोड़ा भी नहीं अकेले में अच्‍छी तरह से देख लेने के बाद की कहीं कोई छुपा कैमरा तो नहीं देख रहा, इसकी तसल्‍ली होने के बाद ही हंसा करो।

Monday, April 5, 2010

दुनिया की आखिरी लड़की का स्‍वयंवर - सानिया के बहाने


सोहराब मिर्जा से सानिया की शादी टूटी तो हमने भी तैश में आकर 'दीवानों की मौजां ही मौजां' नाम से एक ब्‍लॉग लिख डाला था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से जैसे सानिया सुर्खियों में छाई हुई है, भई उसने तो मुझे व्‍यक्तिगत तौर पर बड़ा हैरान किया है। पहली बात तो मैं सभी दीवानों को यह बता देना चाहता हूं कि भई सानिया की निजी जिन्‍दगी भी है और अपनी जिन्‍दगी का फैसला लेने का उसे पूरा हक है। फिर चाहे वह शोएब मलिक से शादी करे या सोमालियाई डाकूओं से, उससे हमारी जिन्‍दगी पर भला क्‍या असर पड़ सकता है।

असली मुद्दे पर आऊं तो मैं एक बार फिर अपनी हैडिंग की तरफ आ रहा हूं। जिस तरह से सानिया और शोएब की शादी को लेकर हो हल्‍ला मचा हुआ है और देशभर में सानिया के फैसले से नाराजगी जताई जा रही है, उससे तो ऐसा लग रहा है जैसे सानिया दुनिया की आखिरी लड़की हो और उसने भी परीस्‍तान का कोई शहजादा चुन लिया हो और अब धरती लड़की विहीन हो गई हो। वैसे एक बात यह भी है कि अभी तक स्‍वयंवर सीरीज के तीसरे सीजन के लिए सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं, अगर तीसरे सीजन के बारे में सोचा जाए तो शोएब को प्रमुख दूल्‍हा मानते हुए राखी के स्‍वयंवर की तरह सानिया का स्‍वयंवर रचा जा सकता है। इस बार इसका नाम 'सानिया का स्‍वयंवर- दुनिया की आखिरी लड़की के लिए जंग' रखा जा सकता है। यह तो रही संभावना की बात, आगे सानिया के बहाने एक बेहद संजीदा मामला जो मेरे जहन में उठ रहा है उसे उघाड़े बिना न तो मुझे ही नींद आएगी और न ही आप इस ब्‍लॉग को पूरा मान पाएंगे।

सानिया के बहाने मुझे देश में गिरते सेक्‍स रेशियो (लिंग अनुपात) ने बेहद चिंतित कर दिया है। देश में हर 10 साल बाद जनगणना होती है और हर बार महिलाओं की संख्‍या पुरुषों की तुलना में कम होती जाती है। भई मैं तो उस दिन के बारे में सोच रहा हूं, जिस दिन प्रति हजार पुरुषों पर सिर्फ एक महिला रह जाएगी और जरा सोचिए कि वह स्थिति कैसी होगी जब पूरे देश में सिर्फ एक ही लड़की रह जाए। सच मानिए अगर ऐसा हो गया तो उसके लिए तलवारें खींचने वालों में मैं सबसे पहले होऊंगा। वैसे मैं ऐसा नहीं करुंगा क्‍योंकि मैं थोड़ा सा सौभाग्‍यशाली हूं क्‍योंकि सिर्फ दो माह बाद मेरी शादी है और वो दुनिया में अकेली लड़की नहीं है, जिसके लिए मुझे जंग लड़नी पड़े। सोचिए कि एक दिन ऐसा आ जाए, सानिया पूरे देश में इकलौती लड़की हो और वह भी एक पाकिस्‍तानी से शादी की बात कर रही हो, तो यकीन मानिए दोस्‍तो मैं, आप और हम सब शोएब के सामने ठीक उसी तरह खड़े हो जाते जैसे मुगलों के सामने महाराणा प्रताप या शिवाजी खड़े हुए थे। भले ही फिर हश्र जो होता लेकिन जब तक शरीर में खून का एक भी कतरा बचता सानिया के साए पर तक भी उसे नहीं पहुंचने देते। लेकिन दोस्‍तो अभी वह स्थिति नहीं आई है, इसलिए सानिया को अपनी मर्जी से शादी करने दो। इससे दुनिया में हमारे भद्र पुरुष होने का भी संदेश जाएगा। फिर भी आपको अगर अपनी भद्रता की कोई कद्र नहीं है तो लगे रहो, सानिया हाय हाय - हाय हाय - हाय हाय। वैसे दिल की बात बताऊं तो मैं भी ऐसे मामले में भद्र पुरुष नहीं कहलाना चाहता।

Monday, March 29, 2010

एक दफा जो तेरा नाम लिया तो सौ फसाने हुए

एक दफा जो तेरा नाम लिया तो सौ फसाने हुए
सब के सब हमारे जीने के बहाने हुए।
पहली बार जो तेरा नाम लिया तो हो गए बदनाम
जो सोचा, तुझे भूल जाऊं तो इल्जाम लगा और हो गए बेईमान
वैसे तो तुझे भूलाना भी नहीं है इतना आसान
पर करुं कैसे याद, दुनिया कर देती है बदनाम
सपनों में भी होते हैं तेरे ही कदमों के निशान
सच तुझे भूलाना नहीं बिल्कुल भी आसान
एक दफा जो तुझे याद किया तो सौ फसाने हुए
सब के सब हमारे जीने के बहाने हुए।

एक दफा जो तेरा नाम लिया तो सौ फसाने हुए

एक दफा जो तेरा नाम लिया तो सौ फसाने हुए
सब के सब हमारे जीने के बहाने हुए।
पहली बार जो तेरा नाम लिया तो हो गए बदनाम
जो सोचा, तुझे भूल जाऊं तो इल्जाम लगा और हो गए बेईमान
वैसे तो तुझे भूलाना भी नहीं है इतना आसान
पर करुं कैसे याद, दुनिया कर देती है बदनाम
सपनों में भी होते हैं तेरे ही कदमों के निशान
सच तुझे भूलाना नहीं बिल्कुल भी आसान
एक दफा जो तुझे याद किया तो सौ फसाने हुए
सब के सब हमारे जीने के बहाने हुए।

Tuesday, March 16, 2010

कोई इस्‍लामिक तस्‍वीर क्‍यों नहीं बनाई एमएफ हुसैन ने

पिछले दिनों भारत के पिकासो कहे जाने वाले मकबूल फिदा हुसैन से संबंधित खबरें जोरों पर रही। पहले खबर आई कि अब वे भारत के नागरिक नहीं रहेंगे और कतर ने उन्‍हें देश की नागरिकता स्‍वीकार करने का प्रस्‍ताव दिया है। इसके दो-चार दिन बाद ही खबर आई कि हुसैन ने कतर की नागरिकता स्‍वीकार कर ली है और वहीं भारतीय दूतावास में भारत का पासपोर्ट जमा करा दिया है। एक 95 वर्षीय व्‍यक्ति को इस तरह से अपना देश छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता हासिल करनी पडे तो यह दुख की बात तो है। लेकिन सुनने में यह खबर जितनी करुण दिखती है माफ कीजिए मुझे उतनी नहीं लगती।

यह तो आप जानते ही हैं कि हिन्‍दू देवियों के विवादास्‍पद नग्‍न चित्र बनाने के बाद भारत में दर्ज हुए कई मुकदमों के कारण करीब चार साल से स्‍वेच्‍छा से विदेश में रह रहे एम़एफ़ हुसैन के लिए यह प्रस्ताव स्वीकार करना एक मजबूरी भी था। उनके बेटे ओवैस ने पिता की भारतीय नागरिता त्‍यागकर कतर का नागरिक बनने के संबंध में कहा 'मेरे पिता स्‍वतंत्र भारत से भी ज्‍यादा उम्रदराज हैं।' उनकी इस बात को कोई नहीं काटता। ओवैश ने यह भी कहा कि उन्‍हें कई फोन आए, जिनमें से कई भड़काऊ भी थे लेकिन वे कभी नहीं झुके।

ओवैश के इस कथन पर मुझे थोड़ा आपत्ति है। आपत्ति यह है कि उनके पिता ने हिन्‍दू देवियों की नग्‍न तस्‍वीरें बनाई और इसके बाद उनके खिलाफ कई मुकदमें किए गए। क्‍या ऐसा ही प्रयोग हुसैन साहब इस्‍लाम के साथ भी करने की हिम्‍मत दिखा सकते हैं। अगर हां तो अब तक ऐसी हिम्‍मत क्‍यों नहीं हुई, अगर नहीं तो उसका कारण तो उन्‍हें सामने आकर स्‍वयं ही बताना चाहिए। एक कारण जो मुझे दिखता है वह तो यही है कि इस्‍लाम में मोहम्‍मद साहब या खुदा का बुत (तस्‍वीर) बनाने की इजाजत नहीं है, ऐसा करने वाले के खिलाफ तुरंत कोई न कोई फतवा जारी कर देता है। अगर वे इस्‍लाम को इस सिद्धत से मानते हैं तो उन्‍हें दूसरे धर्मों की भी उसी तरह इज्‍जत करनी चाहिए। हिन्‍दू धर्म में देवियों को पूजा जाता है, उनकी नग्‍न तस्‍वीर के बारे में बुरे से बुरा व्‍यक्ति भी नहीं सोच सकता, क्‍या उन्‍हें इस बात का इल्‍म नहीं था।

अगली बात इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी भारत सरकार एमएफ हुसैन को देश की शान बताते हुए उन्‍हें पूरी सुरक्षा मुहैया कराने का आश्‍वासन देकर वापस भारत लौटने का न्‍यौता देती है। भारत के गृह सचिव जी के पिल्लई ने तो यहां तक कहा कि हुसैन के खिलाफ कोई मामला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ चल रहे सभी मामलों को खत्म कर दिया है। विदेश सचिव निरूपमा राव ने भी कहा था कि वह चाहेंगी कि हुसैन खुद को भारत में सुरक्षित महसूस करें। इसमें मैं हुसैन साहब से एक बात पूछना चाहता हूं कि भारत जैसे धर्मनिर्पेक्ष देश में उन्‍होंने देवियों की नग्‍न तस्‍वीरें बनाई और सरकार उन्‍हें भारत की शान कहती है क्‍या वे कतर में रहकर इस्‍लाम के साथ ऐसा प्रयोग करके अपने आप को वहां महफूज महसूस कर सकते हैं।

Tuesday, March 9, 2010

इश्क की क्लास में

इश्क की क्लास में
अव्वल आने की फिराक में
जाने हम क्या-क्या कर गए
हंसी आया करती थी कभी जिन अदाओं पे
आज उन्हीं अदाओं पे मर गए।

इश्क की क्लास में
अव्वल आने की फिराक में
पर्ची बनाई कभी
कभी की इधर-उधर ताका-झांकी
अकेले हम ही फेल हुए
पास हो गई क्लास बाकी।

कभी प्यार भरी निगाह मिलाने में
कभी मीठी गोली की चाहत में
इश्क की क्लास में
मैडम को ही दिल दे दिया
उन्होंने भी नहीं समझा मेरे प्यार को
हर सब्जेक्ट में मार्क्स निल दे दिया

इश्क की क्लास में फेल हो गए
अब जाना कि पर्ची न काम आएगी
इस मैडम ने ठुकराया तो क्या हुआ
अगले साल नई मैडम आएगी।

Monday, March 1, 2010

मोहम्‍मद उमर ने भी खूब खेली होली

कल होली थी और हमने जमकर होली खेली, खैर ये कोई बड़ी बात नहीं है हम तो हमेशा ही जमकर होली खेलते हैं। होली के रंग का असली मतलब तो इस बार की होली में ही समझ में आया। अब यहां सवाल उठता है कि अब तक होली के रंग का असली मतलब क्‍या हम नहीं समझते थे, तो इमानदारी से इसका जवाब दिया जाए तो वह 'नहीं' होगा। क्‍योंकि कल पहली बार मैंने मोहम्‍मद उमर को होली खेलते देखा। होली खेलने के बाद फुर्सत के लम्‍हों में घर पर बैठा था और चाचा को कहीं जाना था, सो मैंने कहा कि चलो मैं भी चलता हूं। उन्‍हें अपनी दुकान के लिए चिकन लेना था सो दिल्‍ली के कल्‍याण पुरी में एक चिकन की दुकान पर पहुंच गए। अभी चिकन तोला ही जा रहा था कि उसी दुकान के ऊपर बने पहले माले से आवाज आई 'मोहम्‍मद उमर ... अरे मोहम्‍मद उमर, घर आजा।' यह सुनते ही मेरी पहली नजर उस मां की तरफ गई जो अपने बेटे को घर बुला रही थी और दूसरी उस तरफ जिस तरफ मोहम्‍मद उमर था। उमर को देखकर मन खुश हो गया, क्‍योंकि मो. उमर हाथ में पिचकारी लिए, चेहरा लाल-पीला और दोस्‍तों के पीछे रंग लगाने के लिए भागता फिर रहा था। उमर की उम्र वैसे तो मैं नहीं जानता, लेकिन अंदाजा लगा सकता हूं कि वह कोई 6-7 साल का रहा होगा।

इसी खुशी में अब एक बार फिर मेरी नजर उसकी मां की तरफ गई, लेकिन उनपर होली का कोई असर नहीं था। ठीक यही हाल चिकन बेच रहे उन साहब का था, जो संभावत: मोहम्‍मद उमर के पिता होंगे। उसकी मां के साथ एक और युवा लड़की खड़ी थी उसपर भी होली का कोई निशान नहीं था। कुल मिलाकर अकेला मोहम्‍मद उमर ही था जिसने पूरे घर में होली खेली थी। उमर खुश भी बहुत था, हो भी क्‍यों नहीं भई दोस्‍तों के साथ इस तरह से रंगों में सराबोर होना किसे नहीं अच्‍छा लगता। बात मजहब की नहीं है, बात है हमारी धूर्तता की। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं और भी धूर्त होते जाते हैं। हो सकता है बचपन में मोहम्‍मद उमर के पिता ने भी होली खेली हो और मां भी होली के रंगों में रंगी हो। लेकिन जैसे जैसे वे समझदार होते गए, दुनिया ने उनकी जिन्‍दगी से होली के रंग छीन लिए और मजहब के रंगों में रंग दिया।

क्‍या आपको याद है कैसे हम लोग बचपन में मिलकर रंगों में सराबोर हुआ करते थे और ईद पर दोस्‍तों के घर जाकर सेंवईयों का मजा लेते थे। अब हम दूसरे मजहब के त्‍योहारों का मजा नहीं ले पाते, क्‍योंकि अब हम समझदार हो गए हैं और इंसानियत हमसे दूर हो गई है। इसलिए आज दिल करता है कि क्‍योंकि नहीं हम हमेशा मोहम्‍मद उमर ही बने रहते। इस बात पर जगजीत सिंह की एक ग़ज़ल याद आती है - 'ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी। मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन, वो कागज की कश्‍ती वो बारिश का पानी।' मोहम्‍मद उमर अपनी उस मासूमियत को हमेशा बनाए रखना, तुम शरीर से भले ही बड़े हो जाओ, लेकिन दिल-दिमाग से कभी बड़े मत होना। क्‍योंकि जिस दिन तुम दिल-दिमाग से बड़े हो जाओगे उस दिन ये दुनियावाले तुम्‍हारी जिन्‍दगी से भी होली के रंग छीन लेंगे।

Tuesday, February 9, 2010

चेतेश्‍वर पुजारा ने क्‍या गुनाह किया है ???

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नंबर एक की कुर्सी बचाने के लिए पहले से तय शैड्यूल में जबरदस्‍ती घुसाए गए दो टेस्‍ट मैचों की सीरीज के पहले टेस्‍ट में धोनी के धुरंधर फेल हो गए। खैर कोई बात नहीं, कहा जाता है न कि गिरते हैं सहसवार ही मैदान-ए-जंग में। वैसे भी धोनी की कप्‍तानी में यह पहली टेस्‍ट हार है। इससे पहले 8 टेस्‍ट में जीत भी हुई है, जबकि 3 टेस्‍ट ड्रा भी रहे। धोनी का कहना है कि हार-जीत मायने नहीं रखती, मायने रखता है कि आप कैसा खेले। मैं धोनी के इस अंदाज से बिल्‍कुल सहमत हूं, वैसे भी हर टीम को कभी न कभी तो हार झेलनी ही पड़ती है। स्‍टीव वॉ की विश्‍वविजयी टीम भी भारत को फॉलोऑन खिलाने के बाद टेस्‍ट और सीरीज हार गई थी। असल में मैं जो मुद्दा उठाना चाहता हूं वह है भारतीय चयनकर्ताओं की हो रही बार बार हार का। मैं तो यह जानना चाहता हूं कि चयनकर्ता किसी खास खिलाड़ी को खास जगह देने व किसी की तरफ बिल्‍कुल न देखने पर क्‍यों अड़ि‍ग हैं।

मुरली विजय, रिद्दिमान शाह, एस बद्रीनाथ, रोहित शर्मा और ऐसे ही कई नाम आ जाएंगे, अगर गिनाने बैठे तो। पहले टेस्‍ट में द्रविड व लक्ष्‍मण की कमी साफ खली, या यूं कहें कि उनके जैसे विकेट पर टिकने वाले बल्‍लेबाज की कमी सिद्धत से महसूस की गई। अब मैं डॉमेस्टिक क्रिकेट के एक ऐसे खिलाड़ी की बात करना चाह रहा हूं, जो पिछले कुछ सालों से द्रविड़ व लक्ष्‍मण से बेहतर नहीं तो उनकी शैली में विकेट पर टिकने की क्षमता दिखा रहा है। इस खिलाड़ी का नाम है चेतेश्‍वर अरविंद पुजारा। सौराष्‍ट्र के इस खिलाड़ी ने 2008 के सीजन में अंडर 22 में खेलते हुए 2 ट्रिपल सेंचुरी बनाई।
इसके बाद उसन 2008-09 के सीजन में उड़ीसा के खिलाफ रणजी ट्राफी में एक और तीसरा शतक लगाकर विकेट पर टिकने की अपनी क्षमता का जबरदस्‍त प्रदर्शन किया।

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही देखे जाते हैं। ऐसा ही कुछ चेतेश्‍वर पुजारा ने अंडर 14 में बडौदा के खिलाफ ट्रिपल सेंचुरी मारी, इसके बाद अंडर 19 में इंग्‍लैंड के खिलाफ 211 रन ठोक डाले। पुजारा ने सौराष्‍ट्र की तरफ से अपने दूसरे ही मैच में 145 रन ठोककर बताया कि वे सिर्फ 100 रन बनाकर खुश होने वालों में से नहीं हैं। अंडर 19 वर्ल्‍ड कप में 1 शतक व 1 अर्द्धशतक के साथ पुजारा ने 116 की औसत निकालकर सर्वाधिक 349 रन बनाए।

अब मैं चेतेश्‍वर के बारे में कुछ ज्‍यादा लिखुंगा तो लगेगा कि उसके लिए जबरदस्‍त पैरवी कर रहा हूं। वैसे बता दूं कि मैं उसका कोई रिश्‍तेदार नहीं हूं, मैं तो ये जानता हूं कि भारतीय टीम को द्रविड़ का रिप्‍लेसमेंट चाहिए और वह पुजारा के रूप में मिल सकता है। वैसे वनडे व ट्वेंटी20 में भी उसका रिकॉर्ड किसी भी युवा बल्‍लेबाज से बेहतर है। उसके रिकॉर्ड्स देख लीजिए आप खुद ही समझ जाएंगे कि आखिर मैंने उसके बारे में यह ब्‍लॉग क्‍यों‍ लिख मारा।


फर्स्‍ट क्‍लास करियर (2005/06-2009/10)
मैच/ इनिंग/ नॉट आउट/ रन/ सर्वोत्‍तम/ औसत/ शतक/ अर्द्धशतक/ स्‍ट्राइक रेट/ कैच/ स्‍टंप
कुल मैच 46/ 74/ 11 /3603/ 302*/57.19/ 13/ 12/ 58.27/ 20/ 1
इसमें चेतेश्‍वर में गेंदबाजी करते हुए 5 विकेट भी लिए हैं।



वनडे कैरियर (2005/06-2008/09)
मैच/ इनिंग/ नॉट आउट/ रन/ सर्वोत्‍तम/ औसत/ शतक/ अर्द्धशतक/ स्‍ट्राइक रेट/ कैच/ स्‍टंप
कुल मैच 29/ 29/ 6/ 1063/ 109*/ 46.21/ 2/ 8/ 77.64/ 109/ 8


ट्वेंटी20 कैरियर बल्लेबाजी (2006/07)
मैच/ इनिंग/ नॉट आउट/ रन/ सर्वोत्‍तम/ औसत/ शतक/ अर्द्धशतक/ स्‍ट्राइक रेट/ कैच
कुल मैच 4/ 4/ 1/ 110/ 43*/ 36.66/ 0/ 171.87/ 0/ 2


युवा टेस्ट कैरियर (2004/05-2006/07)
मैच/ इनिंग/ नॉट आउट/ रन/ सर्वोत्‍तम/ औसत/ शतक/ अर्द्धशतक/ कैच
अंडर 19- 3/ 4/ 0/ 314/ 211/ 78.50/ 1/ 1/ 3
इस दौरान पुजारा ने 9 विकेट भी अपनी झोली में डाले हैं।


युवा वनडे अंरराष्‍ट्रीय कैरियर (2005/06-2006/07)
मैच/ इनिंग/ नॉट आउट/ रन/ सर्वोत्‍तम/ औसत/ शतक/ अर्द्धशतक/ स्‍ट्राइक रेट/ कैच
इंडिया अंडर 19- 14/ 14/ 6/ 614/ 129*/ 76.75/ 1/ 5/ 75.15/ 4

अब आप खुद ही फैसला कीजिए कि क्‍या चेतेश्‍वर पुजारा को अब भी कुछ साल इंतजार करना चाहिए या चयनकर्ताओं को जगाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए।

Friday, February 5, 2010

अब जाना प्यार की 'मीठी गोली' का चटपटा स्वाद

बेकरारी का आलम ऐसा है कि सजनी को भी बालम बोल जाते हैं,
अब तो फोन की घंटी बजते ही आई लव यू बोल जाते हैं।
दिल में कोई बात हो न हो, बस यूं ही मुंह खोल जाते हैं,
अब तो हाल ये है कि मिनटों में घंटों को तोल जाते हैं।

भई आई लव यू में बड़ा दम है। मुझे तो अब एहसास हुआ कि हमने अपनी जिंदगी के 27 सावन बस यूं ही गुजार दिए, जबकि आई लव यू के साथ इनकी गिनती करना आसान नहीं होता। भई हमें भी आजकल आई लव यू के बिना नींद नहीं आती। कारण और आई लव यू, वो तो मेरी भावी पत्‍नी हैं। पहली बार देखा तो बमुश्किल ही मैं उसकी तरफ देख पाया, अपने बारे में सब कुछ बताया और उसके जीवन के 23 सावन का चिट्ठा जाना। आज कल तो सुबह भी आई लव यू के बिना नहीं होती और शाम भी इसके बिना ढ़लने से इंकार कर देती है। रात के स्याह अंधेरे में नींद के आगोस में जाने से पहले वो प्‍यारी सी आवाज और वो आई लव यू न सुनाई दे तो लगता है जैसे बिस्‍तर में किसी ने कांटे बिछा दिए हैं। सच बताऊं तो हमारे दिल ने पहले भी दो बार धड़कना चाहा, लेकिन जिनके लिए हिल्‍लोरे मारने को बेकरार था वही इससे बेखबर रहे। फिर हमारे अंदर इतनी हिम्‍मत कभी हुई ही नहीं कि हम दिल की बात कह सकें। फट्टू... जी हां, मुझे और उन्‍हें जानने वाले मुझे यही कह कर पुकारते थे। खैर इस फट्टू के लिए आखिर एक लड़की मिल ही गई, और मजेदार बात तो यह हुई कि जब पहली बार मुलाकात हुई तो शादी के सिलसिले में ही हुई, क्‍योंकि हम इसी लिए उसके घर उससे मिलने गए थे।

उसने हां कर दी और वर्षों से अकेले और फट्टू की जिंदगी जी-जीकर मुरझा चुकी इस ढ़लती जवानी में जैसे पहली-पहली बरसात हो गई। खैर हम दोनों राजी हो गए और फिर घरवालों को भी कहां इंकार होने वाला था। उनकी मर्जी से ही यह सब हो रहा है और उन्‍हें भी ज्‍यादा हाथ पैर नहीं मारने पड़ेंगे यही सोचकर वे भी खुश हैं। अब रोज फोन पर मुलाकात होती है, घंटे मिनटों में खत्‍म हो जाते हैं। मीठी गोली (आई लव यू) जी हां जब भी कोई आसपास होता है तो मीठी गोली कहकर ही काम चला लेते हैं। लेकिन सच में अब एहसास हुआ है कि आई लव यू में बड़ा दम है, क्‍योंकि करार इसमें कम है। ऐसा नहीं है कि मीठी गोली सिर्फ मेरे लिए ही नींद की गोली बन गई है, जनाब उधर का हाल भी ऐसा ही कुछ है। मुझसे बात करते हुए मीठी गोली लेते और देते हुए वह बातचीत को रिकार्ड कर लेते हैं और अकेले में बड़े चाव से मीठी गोली का चटखारा लेती हैं।

Thursday, January 28, 2010

दीवानों की तो मौजां ही मौजां

सवाल नैतिकता का नहीं दिल का है इसलिए भई मैं तो आज बहुत खुश हूं। खुश क्यों हूं? क्या सच में आप नहीं जानते कि मैं क्यों खुश हूं। अपने दिल से पूछिए जनाब! वो भी आज खुशी के मारे दुगुनी तेजी से धड़क रहा होगा। आपका दिल जानता है मेरी खुशी का राज, आप भी अगर जानना ही चाहते हैं तो बता देता हूं। अरे भई गुरुवार 28 जनवरी को आपने सुबह-सुबह टीवी पर खबर तो देखी ही होगी और न सही आज सुबह अखबार खंगाला होगा। एक ही तो हिला देने वाली खबर रही कल की और वो थी सानिया की सगाई टूट गई। अब बताओ इस खबर से खुशी मिली की नहीं। अब मेरी और सानिया के बीच में प्लीज नैतिकता की बात मत घुसेड़ना कि उसकी शादी टूट गई और तुम खुश हो रहे हो। भई हम तो ऐसे ही हैं, जो करते-कहते हैं सो डंके की चोट पर। अब सानिया की शादी सोहराब से नहीं होगी, जो उसके बचपन का दोस्त है। मतलब अब सानिया ज्यादा दिनों तक टेनिस खेल पाऐगी। क्यों याद नहीं आपको उसी ने तो कुछ दिन पहले कहा था कि शादी के बाद टेनिस छोड़ दूंगी। तो लो अब तो शादी ही टूट गई, मतलब हमारी यह टेनिस सनसनी कुछ दिन तक और टेनिस कोर्ट पर अपने जलवे बिखेरेगी। समझ गए हम आपकी मुस्कान को, इसीलिए मुस्कुरा रहे हो न कि भई वो कभी भी दूसरे-तीसरे दौर से आगे तो बढ़ती नहीं और तुम जलवे की बात कर रहे हो। दोस्त मैं तो इस टेनिस परी के हुस्न के जलवों की बात कर रहा था।

फिर बार-बार वो किसी न किसी कॉन्ट्रवर्सी में तो फंसती ही है। उन कॉन्ट्रवर्सीज का भई मैं तो चटखारे लेकर मजे लेता हूं। अगर हमारी सानिया की शादी हो जाती तो, भई मेरे तो चटखारे ही बंद हो जाते। मैं जानता हूं आपकी नैतिकता आपको इस ओर सोचने से भी रोकती है। चलिए कुछ पल के लिए नैतिकता को तिलांजलि देकर देखिए और सोचिए अब भी सानिया की कोई हॉट तस्वीर सामने आती है तो आप क्या करते हैं। क्यों अब मिली वही खुशी, जो उस तस्वीर को बार-बार घूरने से मिलती है। अब आपको मेरी खुशी का कुछ एहसास होगा, जो मुझे इस सनसनी की शादी टूटने से हुई है। भई दीवाने तो दीवाने हैं, इन्हें न घर चाहिए न दर चाहिए, मुहब्बत भरी एक नज़र चाहिए।

कभी अकेले में आपने पोर्न भी देखा ही होगा, मैंने भी देखा है और मुझे लगता है इसमें हर्ज ही क्या है। मेरी जिन्दगी का एक फलसफा है, जिसे में आपसे जाहिर करना चाहता हूं। मैं मानता हूं कि 'जिस भी काम से आपको खुशी मिले उसे करना चाहिए, भले ही वह नैतिक हो या न हो। आपको बस एक बात का ध्यान रखना है कि उससे किसी का नुकसान न हो।' कितनी ही ऐसी पोर्न साइट्स हैं जिन पर सानिया की तस्वीर देखते ही माउस क्लिक करना बंद कर देता है, आखिर क्यों? हमारी कल्पना में जो सानिया है, जो हमें कभी रतजगा कराती है तो कभी सपनों में घर कर जाती है, क्या शादी के बाद वह ऐसा असर छोड़ पाती? नहीं! इसलिए मैंने कहा कि भई मैं तो बहुत खुश हूं सानिया की शादी टूटने से। और मजेदार बात तो यह है कि अब वह ज्यादा दिनों तक टेनिस खेल पाएगी। जितना ज्यादा खेलेगी उतना ही उसके जीतने के अवसर बढ़ेंगे, हमारे उसे देखने के मौके बढ़ेंगे, दिल को धड़कने के बहाने मिलते रहेंगे, टीवी-अखबारों को उसकी कॉन्ट्रवर्सीज से टीआरपी बढ़ाने के बहाने मिलते रहेंगे और हां वेबसाइट्स को तस्वीरों का मसाला व माउस के क्लिक को खराब होने का बहाना भी मिलता रहेगा। तो सानिया हैप्पी ब्रोकेन मैरिज! फॉर ऑल योर लवर्स।

Wednesday, January 27, 2010

...तो भारत-पाक हैं ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार

जी हां दोस्तो! पहले पहल जब मुझे इसी हैडिंग से कुछ-कुछ मिलती जुलती हैडिंग आज सुबह अखबार में पढ़ने को मिली तो मैं एक बार के लिए चौंक गया। असल में अखबार की हैडिंग कुछ इस तरह थी 'भारत-पाक परमाणु युद्ध से ठंडी हो सकती है जलवायु।' इस हैडिंग को पढ़ने के बाद पहली प्रतिक्रिया जो मेरे मन आई वह यही थी कि यह बात सही है कि ये दोनों देश ही ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं। पहला कारण तो हम सब जानते ही हैं कि इन दोनों के रिश्तों में हमेशा तल्खी रहती है और आए दिन कहीं न कहीं बम विस्फोट की घटनाएं भी सुनाई ही देती हैं। इसके अलावा बार्डर पर गोलीबारी की घटनाएं तो आम बात हैं और दोनों तरफ के नेता और सैन्य अधिकारी जिस तरह से गाहे-बगाहे एक दूसरे की तरफ आग उगलते हैं उससे सियासी माहौल ही गर्म नहीं होता बल्कि वो ग्लोबल वार्मिंग का कारण भी बन सकता है।

इन दोनों देशों को ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ठहराने का दूसरा कारण यह है कि दोनों देश दक्षिण एशिया के मजबूत देश हैं और पाकिस्तान न सही भारत दुनिया की सबसे तेज उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हो न हो हम एक दिन क्रिकेट की तरह ही दुनिया की महाशक्ति बनने की कुव्वत रखते हैं। जब हमारा भविष्य इतना शानदार दिखता हो तो जाहिर सी बात है कि कुछ मौजूदा शक्तियां हमें पीछे धकेलना चाहेंगी। सच्चाई यही है कि जो भी ऊंचाई पर होता है वह नहीं चाहता कि दूसरा उसे पछाड़कर उससे आगे निकल जाए। खैर मुद्दे की बात पर आते हुए बता दूं कि इस पैराग्राफ में जो लिखा है उसका संबंध पूरी तरह से उस खबर से है जिसको देखकर मैं यह लेख लिखने बैठ गया।

खबर के कुछ अंश आपको बताऊं तो वह कुछ इस प्रकार थीः परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण पर जापान और आस्ट्रेलिया की एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध हुआ तो इसके कारण जलवायु बेहद ठंडी हो सकती है और दुनियाभर में खेती-किसानी पर इसका विनाशक असर पड़ सकता है। ... भारत-पाक के बीच परमाणु जंग में दोनों देश एक दूसरे के प्रमुख शहरों पर कम असर के हिरोशिमा आकार के हथियारों से हमला करते हैं तो समताप मंडल में जमा हुए धूल-धुएं और रसायनों के बादल वहां लम्बे समय तक ठहर सकते हैं जिससे दुनियाभर में मौसम ठंडा हो जाएगा। ... परमाणु युद्ध से पैदा हुआ विशाल मलबा और धुंआ सूर्य की रोशनी को दशकों तक रोक सकता है और नजीजतन पृथ्वी पर जबर्दस्त ठंड पड़ सकती है।

अब सोचिए कि तकनीक में अपनी श्रेष्ठता साबित कर चुका जापान ऐसी तकनीकी इजात कर ले जिससे जबर्दस्त ठंड के बीच भी कृषि की जा सकती हो तो क्या होगा? दुनियाभर में हो हल्ला मचाने के बावजूद ग्लोबल वार्मिंग का कोई ठोस उपाय न मिल पाने के कारण सभी परेशान हैं। ऐसे में ताजा शोध पर अमल करके यदि ग्लोबल वार्मिंग से निजात मिल सकती है और धरती पर जबर्दस्त ठंड पड़ सकती है तो हो सकता है आज के तथाकथित विकसित और अग्रणी देश भारत-पाक को परमाणु युद्ध में झौंक दें। कुल मिलाकर बात वहीं आती है कि जब तक भारत-पाक के बीच परमाणु युद्ध नहीं होता, तब तक ग्लोबल वार्मिंग का कोई हल दुनिया के पास नहीं है। मतलब साफ है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए भारत-पाक ही जिम्मेदार हैं। इसलिए उन्हें बार्डर पर छिटपुट गोलीबारी और शहरों में छोटे-बड़े धमाके करने की बजाए दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए परमाणु युद्ध की घोषणा कर देनी चाहिए।

Thursday, January 21, 2010

लैंडलाइन से भी झूठ बोल पाएंगे, अब हुई न असली आजादी

दोस्तो पिछले दिनों दो खबरें पढ़ी, जिनमें से एक तो यह कि अब ट्राई (टेलीफोन रेग्यूलेटरी अथारिटी ऑफ इंडिया) मतलब जो संस्था फोन कंपनियों पर नकेल कसने का काम करती है, अब लैंडलाइन के नंबरों को भी दस डिजिट का करने पर विचार कर रही है। दूसरी के बारे में नीचे बात करेंगे। पहली खबर जब मैंने पढ़ी तो मुझे झट से अपने दो क्लासमेट्स और एक सहकर्मी की याद आ गई। ये दोनों झूठ बोलने इतने माहिर हैं कि इन दोनों को ही एक दूसरे ने कड़ी टक्कर दी हुई है। इतना ही नहीं यह खबर पढ़ते ही मन में एक और बात सोचकर मैं मन ही मन मुस्कुराने लगा। जो बात मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर रही थी वह असल में यह थी कि अब लोग घर बैठकर लैंडलाइन से भी झूठ बोल सकते हैं।

अभी शायद आपके समझ में यह बात नहीं आ रही है कि जैसा ट्राई सोच रही है वैसा होने पर लोग लैंडलाइन से कैसे झूठ बोल पाएंगे। तो जनाब कभी बाल कटवाने या दाढ़ी बनावाने के लिए नाई की दुकान पर बैठे जाइए और देखिए कि हजामत बनवाते-बनवाते लोग कैसे मोबाइल पर जरूरी मीटिंग में हूं, दिल्ली से बाहर गया हूं, अभी तो मैं फलां फलां जगह हूं कहते हुए दूसरी तरफ वाले की हजामत करते हैं। ऐसा नहीं है कि यह अकेली जगह है जहां ऐसे झूठ बोले जाते हैं, यही नजारा आपको सड़क पर चलते हुए, बस में, ट्रेन में, ऑफिस में मतलब कहीं भी देखने को मिल जाएगा। क्योंकि मोबाइल का एक ठिकाना नहीं होता इसलिए आपका मन जहां करे बता दीजिए मैं वहां हूं, सुनने वाला विश्वास करे न करे उसके पास दूसरा उपाय भी नहीं होता है। लेकिन लैंडलाइन के मामले में बात दूसरी थी, क्योंकि इससे अगर आप किसी को फोन करते हैं तो वहां का स्थानीय कोड भी चला जाता है। मतलब आप चाहकर भी झूठ नहीं बोल सकते और हां अगर कोई फोन करे और आप उठा लें तो यह तय है कि आप घर पर ही हैं।

अब सोचिए कि लैंडलाइन भी अगर 10 डिजिट के हो गए तो उन झूठ के सरताजों के लिए कितनी सहूलियत हो जाएगी। अब तो वे बिस्तर में लेटे हुए लैंडलाइन से अपने बॉस से बात करेंगे और कहेंगे सर मुझे अचानक मम्मी-पापा के साथ हरिद्वार जाना पड़ा। या दरवाजे पर खड़ी अपनी गर्लफ्रैंड से बचने के लिए डार्लिंग मैं तो अभी मंदिर में हूं।

दूसरी खबर यह थी कि अब आपकी लिखावट आपके झूठ का राज खोल सकती है। इस खबर में वैसे तो कुछ खास बात नहीं थी लेकिन जब पहली खबर के साथ इसे जोड़कर देखा तो सोचा वाह! क्या बात है फोन पर झूठ बोल-बोलकर टर्काते रहो, सामने आने की जरूरत ही क्या है। न आपना सामना होगा और न ही झूठ से पर्दा उठेगा। जब झूठ बोलने की कला आती ही है तो लिखावट का भी कुछ न कुछ कर ही लिया जाएगा। अगर आप कुछ करते नहीं बनेगा तो कोई न कोई ऐसी टेक्नोलॉजी युक्त पेन भी आ ही जाएगा जो सफाई से झूठ लिखने में मदद कर दे। टेक्नोलॉजी के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है और ऐसी तकनीक जिस दिन भी आ जाएगी उस दिन यह खुशखबरी मैं भी अपने ब्लॉग पर आपको जरूर दूंगा। झूठ के सरताजों को बेस्ट ऑफ लक!

पहाड़ों के जीवन का दूसरा पहलू, अभाव में जीता पहाड़



पहाड़ों का जिक्र आते ही अक्सर जेहन में सबसे पहले मसूरी, नैनीताल, शिमला, कुफरी, या कश्मीर के किसी हिलस्टेशन का नाम आता है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि इनकी खूबसूरती की तरफ हर साल लाखों लोग आकर्षित होते होकर यहां पहुंचते हैं। जाहिर है आप भी कई बार इनमें से कुछ वादियों में भटके होंगे और कभी मौका नहीं मिला तो जागती आंखों से सपनों में ही इनका दीदार कर लिया होगा। अब सोचिए जिसका जन्म ही खूबसूरत वादियों में हुआ हो उसके लिए इन वादियों का कितना महत्व होगा। शायद वह इन वादियों को उस नजर से न देखे जिस नजर से एक पर्यटक यहां जाकर देखे। इसलिए तो इस बार की सर्दियों में मुझे अपने गांव जाने का मौका मिला तो मैं दुखी हो गया। पहले तो बता दूं कि मेरा गांव उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रानीखेत से करीब 35 किमी दूर चमड़खान और भिकियासैण के बीच में है और गांव का नाम है नैटी। अब आप कहेंगे कि अपनी जन्मभूमि गया और इतनी खूबसूरत जगह जाकर भी दुखी क्यों हुआ होगा। तो इसका जवाब आपको नीचे मिल जाएगा।

दिसम्‍बर के पहले हफ्ते में एक बार फिर पहाड़ जाने का मौका मिला। मौका था, बड़ी मॉसी के बेटे की शादी। पहले पहल तो पहाड़ों में एक बार फिर कुछ दिन बिताने के एहसास ने ही मन में रोमांच पैदा कर दिया। खैर वो वक्‍त भी आ गया जब मैं और मां पहाड़ की गाड़ी पर सवार होकर वहां के लिए चल दिए। मन में कई रंग-बिरंगे खयाल आ रहे थे, 'पहाड़ में इस समय कितनी हरियाली होगी, क्‍या सुंदर नजारे होंगे, क्‍या कड़ाके की ठंड होगी, दिन में धूप में बैठना कितना अच्‍छा लगेगा, सुबह-सुबह गरम पानी से मुंह-हाथ धोने में कितना अच्‍छा लगेगा वगैरह वगैरह। इन्‍हीं खयालों की राहों में भटकते हुए कब गाजियाबाद, मुरादाबाद, काशीपुर, रामनगर और फिर कॉर्बेट पार्क निकल गया पता ही नहीं चला। शायद मैं भी कुछ-कुछ उसी पर्यटक की तरह पहाड़ को मन में बिठाए था जो कभी-कभी छुट्टियां मनाने पहाड़ों की तरफ चल देते हैं। लेकिन यहां एक अंतर था, अक्‍सर वो पर्यटक गर्मियों में पहाड़ का नजारा करने जाते हैं जबकि मैं सर्दियों में आया था। उन पर्यटकों से अलग मुझे पहाड़ के जीवन की दुस्‍वारियों में बारे में भी शायद कुछ ज्ञान था।

इस बार गांव गया तो पहले से ही मन में एक विश्‍वास था कि सर्दियों का समय है कम से कम इस समय तो पानी की कि‍ल्‍लत नहीं होगी। लेकिन गांव पहुंचकर जो नजारा देखा वो मुझे सपनों से जगाने के लिए काफी था। गांव में ही बनी टंकी में कभी पानी ज्‍यादा हो जाए तो ओवर लोड होने वाले पानी के लि‍ए ठीक उसी टंकी के नीचे दूसरी टंकी बन रही थी। ओवरलोड पानी के लिए दूसरी टंकी बन रही थी इसका मतलब यह कतई नहीं है कि सब कुछ ठीक-ठाक था। सरकारी प्‍लमर गांव में आया तो समझ आया कि असल में स्रोत से पानी कम आ रहा है और उसे गांव से एक वालंटीयर चाहिए जो उसके साथ स्रोत तक जाकर नल की मरम्‍मत करने में मदद कर दे। खैर यहां तो वालंटीयर मिल गया और शाम तक पानी दुरुस्‍त भी हो गया। अगले दिन अपने गांव के ऊपर वाले गांव (बंगोड़ा) में चला गया तो वहां पानी की टंकी का नजारा देखकर मैं दंग रह गया। टंकी को देखकर अखबार की वही घिसी पिटी हैडलाइन याद आई 'पानी पर पहरा'। जी हां पानी पर पहरा, यहां नल पर एक टिन के डिब्‍बे को कुछ इस तरह से ताला लगाया गया था जिससे कोई वहां से ज्‍यादा पानी न ले सके। फिर एक खयाल आया कि जब सर्दियों में ये हाल है तो गर्मियों में क्‍या होगा।

पहाड़ सुंदर हैं, हरे-भरे हैं, यहां पर्यटक छुट्टियां बिताने आते हैं, यहां के लोग बहुत अच्‍छे हैं, यहीं पर ज्‍यादातर नदियों का उद्गम स्‍थल है मतलब ज्‍यादातर नदियां यहीं से पैदा होती हैं और मैदानों की प्‍यास बुझाती हैं। पहाड़ सुंदर हैं इसमें किसी को भी कोई शक नहीं होना चाहिए, वैसे भी सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है। हरे-भरे हैं यह भी सच है, इसे पहाड़ के लोग ज्‍यादा अच्‍छी तरह से जानते हैं क्‍योंकि जंगल घर के पास तक पहुंच चुका है और जंगली जानवर बाघ (वो तो अब लुप्‍तप्राय है), सूअर, भालू घरों तक आ जाते हैं। जंगल हरे-भरे जरूर हैं लेकिन खेतों में सुअर हरियाली को रहने नहीं देते, इसलिए ग्रामीण जंगलों को कब तक हरा रहने देंगे इसकी कोई गारंटी नहीं।

पर्यटक यहां छुट्टियां बिताने जरूर आते हैं लेकिन यहां पलायन का मंजर ऐसा है कि गांव के गांव खाली हो चुके हैं। राज्‍य को बने 9 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन कोई भी ऐसी कारगर नीति अभी तक राज्‍य सरकार नहीं बना पाई जिससे पलायन को रोका जा सके। कोई बाखेली (एक लाइन में बने कई मकान एक साथ) जो कभी बच्‍चों की किलकारियों और शाम को चाय के समय जमती महफिलों से गुलजार रहा करती थी आज उनमें से बमुश्किल कोई एक घर के ही दरवाजे खुले मिलते हैं। चैत्र मास की रातों में झोड़े और सर्दियों की लंबी रातों में आण काथ में जहां रतजगा हुआ करता था वहीं अब अंधेरा होते ही गांव में वीराना पसर जाता है। जो कुछ लोग गांव में बच गए हैं वे भी एक दूसरे के घर पर महफिल जमाकर बैठने की बजाए अपने घर में ही सास-बहू के नाटक में मशगुल रहना ज्‍यादा पसंद करते हैं।

अब कहें क्‍या अब भी पहाड़ों को सिर्फ हरा-भरा, सुंदर और सैलानियों की आरामगाह कहा जाना ठीक होगा। क्‍या अब भी यह भरोसा किया जा सकता है कि गंगा, यमुना जैसी बड़ी-बड़ी नदियां इन्‍हीं पहाड़ों से निकली होंगी। शायद इस बार मैंने पहाड़ों को ज्‍यादा करीब से जाना और वहां के जीवन को समझने की तरफ एक कदम बढ़ाया। बरसात की कमी के कारण ज्‍यादातर जल स्रोत सूख चुके हैं और खेतों में फसल पहले ही नहीं हो रही थी और अब भालू व सुअर भी उन्‍हें नष्‍ट करने आ पहुंचे हैं। अभावों के बीच जीता पहाड़ी जीवन अक्‍सर अपने ही अभावों से हारने को मजबूर रहता है।