Tuesday, September 14, 2010

इंद्रदेव के नये टूरिस्ट स्पॉट का मजा लीजिए...

कॉमनवेल्‍थ गेम्स शुरू होने से ठीक पहले दिल्ली को एक और टूरिस्ट स्पॉट मिल गया। इस नए टूरिस्ट स्पॉट पर लोग अपने पूरे परिवार सहित गाड़ियों में सवार होकर आ रहे हैं। इधर से गुजरते लोगों में भी दिल्ली के इस नये-नवेले टूरिस्ट स्पॉट को देखकर खुशी और हैरत का मिश्रित भाव है। हर कोई इसे जी भर के निहार लेना चाहता है, क्या पता फिर ऐसा नजारा कब देखने को मिले! ये भी नहीं पता कि मिलेगा भी या नहीं! एक बात तो तय मानी जा रही है कि कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने से पहले ही यह टूरिस्ट स्पॉट अपनी यह सुंदरता खो देगा। अब आप कहेंगे अमा यार गज़ब के इंसान हो। सरकार कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए सुंदरता-सुंदरता चिल्ला रही है और तुम इस टूरिस्ट स्पॉट की सुंदरता तब तक खत्म होने की बात कर रहे हो। दोस्तो इस नए टूरिस्ट स्पॉट का नाम आप सब जानते हैं। लेकिन आज तक यह आपके लिए नाक-मुंह सिकोड़ने वाला भर था। जी हां यमुना नदी की ही बात कर रहा हूं। जिसके पास से गुजरते ही आप नाक बंद करके मुंह सिकोड़ते हुए निकल जाते थे और जाते-जाते इसे गंदा नाला भी कह जाते थे।

आजकल आप यमुना पर बने किसी भी पुल से गुजरिए लोग पुल के किनारे गाड़ी लगाकर इसे ऐसे देखते हैं जैसे कह रहे हों कि ‘आ तुझे आंखों में भर लूं।’ यमुना में इतना पानी है कि इसने निचले इलाकों में लोगों के घरों में भी घुसपैठ कर दी है। इस सब के बावजूद यमुना की जो सुंदरता अभी दिख रही है उसे देखते हुए लगता है कि काश! यह सुंदरता हमेशा बनी रहती। अब आपको याद होगा, सरकार पिछले कई सालों से यमुना के आसपास सौंदर्यीकरण क्यों कराना चाहती थी। लेकिन ये सरकार के बूते की बात नहीं है, ऐसा ही कुछ सोचकर इंद्रदेव ने अपने नलके खुले छोड़ दिए हैं। जितने सालों से सरकार इस इलाके की सुंदरता की बात कर रही है, अगर ऐसा कर लिया जाता तो न जाने क्या क्या हो जाता। रेहड़ी, फल, चाट, आइसक्रीम वालों से सरकार को ढ़ेर सारा राजस्व हासिल होता और किसी भ्रष्टाचारी की जेब भी गरम हो जाती। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ, जिस यमुना को इंद्रदेव ने खूबसूरत बनाया है उसकी सुंदरता से कुछ राजस्व गरीब लोगों के पेट की आग बुझाने के काम आ रहा है जो वहां पर छोटी-छोटी चीजें बेचने के लिए आ गए हैं। अच्छा ही है गरीब का पेट भर रहा है वरना सरकार इसका सौंदर्यीकरण करती तो किसी भ्रष्टचारी की जेब भरती।

अभी आखिरी कुछ दिन बचे हैं, अगर आप अभी तक इस नए टूरिस्ट स्पॉट पर नहीं गए हैं तो तुरंत जाइए। क्या पता इंद्रदेव कब अपने नलकों पर ताला लगा दें। हो तो यह भी सकता है कि सरकार यहां पर भी एंटरटेनमेंट टैक्स लगाकर आपकी गाढ़ी कमाई और गरीब के पेट की रोटी छीनकर किसी भ्रष्टाचारी की जेब भरने लग जाए। तो जल्दी कीजिए… मिलते हैं ‘बस यूं ही’ इसी नए टूरिस्ट स्पॉट पर।

Saturday, September 11, 2010

इस एक मोहरी के सजदे धर्म व कट्टरता

ईद का मौका था, और एक बार फिर मैं अपने एक परिचित के घर पर सेवईंया खाने पहुंच गया। आपको शायद याद हो, होली के मौके पर मैंने मोहम्‍मद उमर के होली खेलने के वाकए का आपसे जिक्र किया था। उस समय जैसा ही अनुभव मोहम्‍मद उमर को होली खेलते हुए देखकर हुआ था वही मैं हर बार ईद पर सेवईंया का लुत्‍फ लेते हुए भी करता हूं। लेकिन इस बार मैं आपसे एक खास बात का जिक्र करना चाहता हूं। एक मोहरी ने मेरा ध्‍यान पिछले काफी समय से अपनी ओर खींचा हुआ था। सोचा इस बार उस मोहरी का जिक्र आप लोगों से कर ही लिया जाए। अरे सॉरी दोस्‍तो, शायद आप में से कुछ लोग मोहरी का मतलब न समझ पाए हों। असल में पहाड़ी (कुमाउंनी भाषा) में खिड़की को मोहरी कहा जाता है। एक छोटी सी मोहरी का जिक्र आपसे इस प्‍लेटफॉर्म पर क्‍यों? अगर आप भी यही सोच रहे हैं तो उसका जवाब तो ऊपर हैडिंग में ही है। क्‍योंकि इस एक मोहरी के सजदे धर्म और कट्टरता जाए। यह मोहरी हमारे समाज की उस छोटी और संकीर्ण मानसिकता को मुंह चिढ़ाती है, जो दो समुदायों में आपसी वैमन्‍स्यता फैलाती है।

इस मोहरी के एक ओर रहता है अपने धर्म को अपनी जान समझने वाला एक मुस्लिम परिवार और दूसरी ओर पूजा पाठ में रमा रहने वाला हिन्‍दू परिवार। ये एक मोहरी इन दोनों परिवारों को ठीक वैसे ही जोड़ती है जैसे आप और मैं। हर छोटी बड़ी खुशी और दुख में दोनों परिवार एक दूसरे का पूरा साथ देते हैं। इन दोनों परिवारों को एक दूसरे से बात करने के लिए घर से बाहर या एक दूसरे के घर नहीं जाना पड़ता। यह दोनों परिवार अपने कमरों में ही रहकर एक दूसरे से बड़े ही आराम से मोहरी के आर पार खड़े होकर बात करते हैं। जब भी किसी एक के घर में किसी चीज की कमी होती है तो रात-बिरात दूसरे से बात करने में कोई हिचक नहीं होती। कभी कभी तो दोनों परिवारों को देखकर लगता ही नहीं कि ये दोनों अलग अलग समुदायों से हैं। दोनों परिवार एक दूसरे के त्‍योहारों और घर के कार्यक्रमों में पूरे मन से शामिल होते हैं। इन दोनों परिवारों को देखकर लगता ही नहीं कि दोनों अलग अलग समुदायों से हैं। यह मोहरी ऐसे ही लगती है जैसे धर्म के ठेकेदार ऊंची ऊंची दीवारें चिनवाने पर आमादा हैं और ये दोनों परिवार उन दीवारों के बीच खिड़कियां निकालकर प्‍यार और सिर्फ प्‍यार की बयार बहाना चाहते हैं। इनकी इस मोहरी के मैं सजदे जाऊं और इनके बीच के इस प्‍यार और भाईचारे को किसी की नजर न लगे।