Monday, December 2, 2013

'आप' से सरकार है

'आप' से सरकार है,
सरकार से 'आप' नहीं.
यही पूरी सच्‍चाई है,
जिसे आज तक किसी ने बताया नहीं.
दिल्‍ली से भ्रष्‍टाचार की दलदल,
घोटालों की बौछार और
मिटाने के लिए गंदगी का श्राप,
चलिए मिलकर 'झाड़ू' उठाएं,
कल ही हम और 'आप'

Tuesday, November 26, 2013

चलिए झाड़ू लगाएं...

एक 'हाथ' ने पूरे देश में भ्रष्‍टाचार की इतनी गंदगी फैलायी कि
उसमें यूपी, उत्तराखंड से लेकर झारखंड, गुजरात, एमपी
छत्तीसगढ़ और कर्नाटक तक 'कमल' की खेती लहलहा उठी.
भ्रष्‍टाचार के इसी दलदल में कूदकर 'हा‍थी' ने आत्‍महत्‍या की तो,
दलदल की कीचड़ से 'साइकिल' से लेकर 'कटार' तक सभी सन गए.
अब किसे दोष दें ये वक्‍त, ये 'घड़ी' ही भ्रष्‍टाचार की है,
'लालटेन' भी चारे कि बिना नहीं जलता,
'धनुष-बाण' और 'तीर' भी अब भ्रष्‍टाचारियों के लिए ब्रम्‍हास्‍त्र बन गए है.
अब तो 'सूरज' भी भ्रष्‍टाचारियों के आंगन में ही उगता है,
न 'दो पत्तियां' न ही 'तीन पंखुड़ि‍यां' किसी को भी ईमानदारी की रोशनी रास नहीं आयी.
'कलम-दवात' भी भ्रष्‍टाचारियों के इतिहास को लिखते-लिखते नहीं थकते
'तराजू' भी बेइमानी के बोझ से दबा जा रहा है.
ऐसे में इस 'दल-दल' को साफ करने के लिए कोई तो चाहिए,
चलिए 'झाड़ू' लगाएं...

Wednesday, July 31, 2013

दो दिलों को मिला दो प्‍लीज, मार कर कैसी लव स्‍टोरी?

मेरे डायरेक्‍टर और फिल्‍मों की कहानी लिखने वाले राइटर भाईयो आजकल आपको हो क्‍या गया है? आप बनाते तो लव स्‍टोरी हो, लेकिन अंत तक आते-आते हीरो-हिरोइन को मिलाने की बजाए दोनों में से एक को मार देते हो. आखिर हो क्‍या गया है आपको. क्‍यों आप दो प्‍यार करने वाले दिलों को मिलने नहीं दे रहे. हमारे हिन्‍दी फिल्‍मों के इतिहास में हीरो-हिराइन के दुश्‍मन वैसे ही कौन से कम थे, जो आप लोग उनकी जान के पीछे पड़ गए हो.

कभी प्रेम चोपड़ा ने अपनी चतुर चालों से प्रेमियों के राहों में कांटे विछाए तो कभी मोगेंबो खुश हुआ तो आशिकों की जान सूख गई. शाकाल ने भी कम जुल्‍म नहीं ढाऐ दो प्‍यार करने वाले दिलों पर. प्राण साहब का इंतकाल हुए अभी ज्‍यादा दिन नहीं गुजरे हैं, लेकिन भगवान माफ करे उनके कर्मों के कारण आशिकों के दिलों से खूब बददुआएं निकली होंगी. टाइगर अजित को कोई कैसे भूल सकता है. जीवन ने तो आशिकों की पिटाई करने से भी गुरेज नहीं किया. ललिता पवार ने कभी सास बनकर तो कभी कुछ और बेटे का प्‍यार यानी अपनी बहू पर जो जुल्‍म ढाए वो पर्दे से बाहर भी निकल आए.

गब्‍बर सिंह तो सभी विलनों का बाप निकला, उसने तो वीरू की फूल सी नाजुक प्रेमिका बसंती को टूटे कांच पर नाचने के लिए मजबूर कर दिया था. वैसे एक बात बताऊं हमारे हीरो इन विलनों से पार पा कर अपनी हीरोइन को ले उड़े, लेकिन आप तो सच में बड़े वाले हो यार!


कुछ साल पहले 'गजिनी' फिल्‍म देखी थी. फिल्‍म देखकर हॉल से बाहर आया तो एक ही दुख सता रहा था, यार संजय सिंघानिया अपनी प्रेमिका कल्‍पना को अपनी सच्‍चाई नहीं बता पाया और वो मर गई. हाल के दिनों में तीन फिल्‍में देखी हैं और यहां पर भी आप लोगों ने दर्द को दिल की गहराई में सूल की तरह उतार दिया. 'रांझणा' देखी यहां पूरी फिल्‍म में हीरोइन से चांटे खाते रहे हीरो को जब अपनी प्रेमिका मिल सकती थी, ठीक उसी समय पर आपने उसे मार दिया. फिल्‍म 'लुटेरा' में प्‍यार एक बार फिर से परवान चढ़ता लेकिन उससे पहले ही लेखक साहब आपने पुरानी फिल्‍मों के जज की तरह अपनी कलम की नोंक तोड़ दी. तीसरी फिल्‍म, जिसने 'गजिनी' के बाद सबसे ज्‍यादा दुख दिया वह थी 'आशिकी-2'. आपकी तो नजर, नीयत और दिमाग सब कुछ खराब है. पहली वाली 'आशिकी' में सारे दुख-दर्द झेलकर भी अंत में हीरो-हिरोइन मिलते हैं तो हर युवा के दिल में प्‍यार का फूल खिलने लगता है. लेकिन आपको दूसरों की खुशी कहां अच्‍छी लगती है? 'आशिकी-2' में सब कुछ अच्‍छा चल रहा था, हिरोइन पल-पल हीरो का साथ दे रही थी, हीरो ने भी सुधरने का वादा कर लिया था, लेकिन आपने उसे समुद्र में कुदा दिया.

देखिए आशिकों की बददुआएं मत लीजिए. आशिकों की बददुआएं बहुत बुरी होती हैं. कबीर दास का दोहा तो सुना ही होगा आपने - दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय। मरी खाल की सांस से, लोह भस्‍म हो जाय।। भईया पूरी राम कहानी का सार यह है कि आशिकों को मिलाकर कुछ अच्‍छा काम कर लो.

आप तो जानते ही हैं आशिकों के कितने दुश्‍मन इस बॉलीवुड में पहले से ही हैं. प्रेम नाथ, रंजीत, आउ लौलिता कहने वाले शक्ति कपूर, कादर खान, डैनी, अनुपम खेर, नसीरउद्दीन शाह, गुल्‍शन ग्रोवर, परेश रावल, सदाशिव अमरापुरकर, आशुतोष राणा, रजा मुराद, किरन कुमार, मोहन अगाशे, आशीष विद्यार्थी, आदित्‍य पंचोली, गोविंद नामदेव, शरत सक्‍सेना, राहुल देव, पंकज कपूर, बोमन इरानी और न जाने कितने विलन हुए इस फिल्‍म इंडस्‍ट्री में जिन्‍होंने आशिकों का जीना मुहाल किए रखा है. अब आप लोग भी प्‍यार के सुंदर गीत गाने वाले इन आशिकों की जान के पीछे पड़ जाएंगे तो फिर प्‍यार के दो फूल कैसे खिलेंगे?

Monday, January 21, 2013

इलाज के इंतजार में बुरी तरह बीमार आरबीटीबी अस्‍पताल


आरबीटीबी जी हां, किंग्‍जवे कैंप दिल्‍ली में बना राजन बाबू टीबी अस्‍पताल टीबी के मरीजों के इलाज के लिए बना है. लेकिन इसकी हालत देखकर लगता है इस अस्‍पताल को ही जिन बीमारियों ने जकड़ा हुआ है उनसे निजात दिलाने के लिए इसकी जबरदस्‍त सर्जरी की जरूरत है.

टीबी के मरीज बहुत संवेदनशील होते हैं और उन्‍हें किसी भी तरह के इन्‍फेक्‍शन की संभावना ज्‍यादा होती है. इन्‍फेक्‍शन के खतरे को टालने के लिए मरीज के आसपास साफ-सफाई बेहद जरूरी होती है. लेकिन इस अस्‍पताल में आने पर आपका यह भ्रम शायद टूट जाए. अस्‍पताल में जहां तहां आवारा कुत्ते घूमते हुए नजर आ जाते हैं. मरीज के बेड के आसपास और बेड के नीचे इन कुत्तों का डेरा है. मरीज और उनकी देखरेख के लिए रुके उनके रिश्‍तेदारों से बात करने पर वे बताते हैं कि कुत्ते ताक में रहते हैं और पलक झपकते ही सामान चुराकर ले जाते हैं. ज्‍यादातर बेड के साथ लगी साइड टेबल के निचले हिस्‍से में दरवाजा नहीं है, इसलिए सामान अंदर नहीं रखा जा सकता और कुत्ते हमेशा ताक में रहते हैं. एक मरीज के रिश्‍तेदार ने बताया कि नर्सिंग स्‍टाफ ने उन्‍हें आगाह किया है कि यहां एक पागल कुत्ता घूम रहा है बच के रहना.

यही नहीं मरीज के रिश्‍तेदारों ने बताया कि मरीजों के लिए बने टॉयलेट में सुबह-शाम छोड़कर दिनभर पानी भी नहीं आता. जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा हुआ है. गंदे पानी की निकासी के लिए उचित व्‍यवस्‍था तक नहीं है, जिस कारण जगह-जगह गंदा पानी जमा है और उसमें बदबू आती रहती है.

अस्‍पताल के नर्सिंग स्‍टाफ से बात करने पर उनका कहना है कि कुत्तों को कैसे रोक सकते हैं. उनके अनुसार उन्‍होंने एमसीडी में कुत्तों के संबंध में शिकायत की है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. यही नहीं नर्सिंग स्‍टाफ ने तो अस्‍पताल में कुत्तों की इतनी बड़ी संख्‍या के लिए मरीज और उनके रिश्‍तेदारों को जिम्‍मेदार ठहरा दिया. उनका कहना है कि मरीज व रिश्‍तेदार कुत्तों को खाना देते हैं, इसलिए वे मरीजों के आसपास घूमते रहते हैं.

टॉयलेट में पानी न होने के मामले में नर्सिंग स्‍टाफ सफाई देता है, 'मरीज के रिश्‍तेदारों को दिनभर के लिए पानी भरकर रखना चाहिए, सुबह-शाम तो पानी आता ही है.