आज तुमने मान लिया
के तुम तब झूठे थे।
शक तो तब भी हुआ था तुम पर
फिर भी यकीन कर गए तुम पर।
आज तुमने माफी मांग ली,
अब हमें भी माफ कर दो।
यकीन किया था तुम पर,
हमारा वो विश्वास लौटा दो।
माफी का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा,
तुम्हारे झूठ को हम सच समझते थे।
खुद से हमारा ये शिकवा-गिला चलता रहेगा,
तुम्हारे झूठ को सच जो समझते थे।
तुमने अपना नकाब क्या उतारा,
दुनिया की नजरों से उतर गए।
हम तो फिर भी गैर हैं,
खुद से क्या नजरें मिला पाए?
शायद अब तुम अच्छे से मंझ गए हो,
झूठे थे पहले से ही या
मक्कार अब हो गए हो
बताना जरूर, ताकि विश्वास करने की गलती दोबारा न हो...
(C) दिगपाल सिंह जीना
के तुम तब झूठे थे।
शक तो तब भी हुआ था तुम पर
फिर भी यकीन कर गए तुम पर।
आज तुमने माफी मांग ली,
अब हमें भी माफ कर दो।
यकीन किया था तुम पर,
हमारा वो विश्वास लौटा दो।
माफी का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा,
तुम्हारे झूठ को हम सच समझते थे।
खुद से हमारा ये शिकवा-गिला चलता रहेगा,
तुम्हारे झूठ को सच जो समझते थे।
तुमने अपना नकाब क्या उतारा,
दुनिया की नजरों से उतर गए।
हम तो फिर भी गैर हैं,
खुद से क्या नजरें मिला पाए?
शायद अब तुम अच्छे से मंझ गए हो,
झूठे थे पहले से ही या
मक्कार अब हो गए हो
बताना जरूर, ताकि विश्वास करने की गलती दोबारा न हो...
(C) दिगपाल सिंह जीना
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