Wednesday, February 26, 2020

ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा, कौन है जो आग लगा रहा है

ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा है,
इंसानियत को लहूलुहान कर रहा है।
ये कौन है जो आग लगा रहा है।
दुकानों ही नहीं भाईचारे को भी जला रहा है।

क्यों सड़कों पर बिखरा कबाड है,
क्यों दंगों से जिंदगी यूं बेजार है।
घर लौट जा तुझे भी कहता हूं मैं,
ये राह और उसके आगे मोड़ बेकार है।

कौन सा खुदा है जो पत्थर फेंकने को इबादत कहता है,
कौन वो भगवान है जो आगजनी पर खुश होता है।
कुछ लोगों के बहकावे पर भड़क जाती हैं भावनाएं तेरी,
'जीना' नहीं चाहता क्या, बहुत कीमती है जिंदगी तेरी-मेरी।

यूं न कर इंसानियत को शर्मसार,
चल फिर गले मिलते हैं मेरे यार।
तू ईद पर मुझे सेवईंया खिला
मैं होली पर रंग के तुझपर बरसाऊं प्यार।
@दिगपाल सिंह जीना

Friday, February 21, 2020

सबके भेद खुल गए, रंगे सियार धुल गए

सबके भेद खुल गए,
रंगे सियार धुल गए।
असली रूप में आए नजर
अब एक-एक होगा दर-बदर।

चेहरे से नकाब उतर गया,
गद्दारों का मुखड़ा दिख गया।
कोई भारत के टुकड़े कर रहा,
कोई दुश्मन जिंदाबाद कर गया।

जागी सतायों के लिए उम्मीद ऐसी,
घर और दिल में जगह दिलाएगा CAA-NRC
अब अपना भी हंसता खेलता परिवार होगा,
 देश की खुशहाली में मेरा भी अधिकार होगा।

ये खुशी गद्दारों को ना हज़म हुई,
विरोध के नाम पर देश तोड़ने की बात हुई।
और इस तरह रंगे सियार धुल गए,
भेद उनके सारे खुल गए।