Wednesday, September 22, 2021

अपने संस्कार छोड़कर मैं, तुम्हारे जाहिल संस्कारों का हो गया

 हम जाहिल थे,

हम गंवार थे।

तुमने पूरी मेहनत की

हम मान भी गए तुम्हारी बात।


वक्त का पहिया घूमा

हमने अपने जाहिल संस्कार छोड़े।

तुमने जो कहा वो किया,

जमीन से अपने संबंध भी तोड़े।


गंगा स्थिर न रह सकी,

न जाने कितना पानी इसमें बह गया।

अपने संस्कार छोड़कर मैं,

तुम्हारे जाहिल संस्कारों का हो गया।


आज तुम मेरे उन्हीं संस्कारों की माला जपते हो,

जिन्हें मेरे गंवार होने का सर्टिफिकेट बताते थे।

कोयला आज तुम्हारा टूथपेस्ट है,

नमक से तुम्हारे दन्तमंजन का टेस्ट है।


जेल लगाना सिखा दिया तुमने मुझे,

आज खुद शैंपू में भी तेल मिलाते हो।

जिम की आदत लगाकर मुझे,

खुद योग में चैन की सांस पाते हो।

Monday, September 20, 2021

फिर नया आशियाना होगा, एक बार फिर नया ठिकाना होगा।

 नई उड़ान, नया सफर

मंजिल भी नई है।

उम्मीदें नई हैं, हौसले नए

उमंग भी तो नई है।


एक डाल से उड़ा पंछी,

दूसरी डाल पर जा बैठेगा।

फिर नया आशियाना होगा,

एक बार फिर नया ठिकाना होगा।


नई डाल की नई चुनौतियां,

नए रास्तों से रूबरू मिलना होगा।

पुराने रास्तों का प्रेम और

पुरानी डाल का अनुभव साथ होगा।


जीवन की सीख नई होगी,

नई रीत से मेल-जोल होगा।

बस यूं है ये रास्ता आगे बढ़ेगा,

पुरानी डाल का योगदान अनमोल होगा।

Thursday, September 16, 2021

नदी सा बहो तुम, तुम्हें तो नीले समंदर तक जाना है

 अभी तो ये पहला ही पड़ाव है,

पहाड़ से नदी का उथला बहाव है।

मंजिलें आएंगी राह में कितनी और,

मंजिल दूर है अभी, ये बस ठहराव है।


तुम्हें यू ही चलते जाना है,

तुम्हें यूं ही बहते जाना है।

रुकावटें भी आएंगी राह में,

तुम्हें उन्हें पीछे छोड़ते जाना है।


नदी सा बहो तुम,

सुनसान राहों में झरने भी आएंगे।

वीरान जंगल और चकाचौंध शहर भी आएंगे,

रुकना नहीं, ये तुम्हें मंजिल से भटकाएंगे।


तुम्हें बहते जाना है,

ये तो एक छोटा सा पड़ाव है।

मदमस्त होकर चलते चलो तुम,

तुम्हें तो नीले समंदर तक जाना है।


आसमान की बुलंदियां तुम्हारी हैं,

अभी तो मेहनत की बहुत तपिश झेलोगे

आग से डरना तुम्हारा काम नहीं,

जलोगे तभी तो धुंए की तरह आसमान छुओगे।