Saturday, May 21, 2011

क्या इतना आसान है पाकिस्तान पर हमला करना?

जी हां! ये सवाल अब बार-बार उठ रहा है कि भारत क्यों नहीं पाकिस्तान पर हमला कर देता है। दाऊद इब्राहिम के अलावा आतंकवादी गुट लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद आदि का खात्मा तो हम जाने कब से चाहते हैं। पाकिस्तान की राजधानी के नजदीक ही छुपे बैठे दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के खिलाफ अमेरिका की कार्रवाई के बाद तो ये सवाल और भी मुखर हो गए हैं। हर कोई पाकिस्तान को पाकिस्तान में जाकर ही ठोकने-बजाने की बात करने लगा है। अमेरिका ने लादेन को मारने के लिए जो किया वैसा करने की क्षमता हमारे अंदर भी है और हम तैयार भी हैं- ये बात किसी आम आदमी ने नहीं बल्कि सेना अध्यक्ष वीके सिंह ने कही। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी तो पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने पर आमादा है। उसका बस चले तो वह आज के आज पाकिस्तान पर दस-बीस बम गिराकर उसका काम तमाम कर दे।

वैसे बीजेपी का अभी बस भले ही न चले, लेकिन जब वो सत्ता में थे तो उन्होंने ‘बस’ जरूर चलाई थी। 19 फरवरी, 1999 को बीजेपी के शासन में ही दिल्ली और लाहौर के बीच बस सेवा शुरू हुई थी। खुद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस बस में बैठकर गए और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अटारी बॉर्डर पर उनका स्वागत किया। इसके बाद मई-जून में पाकिस्तान ने कारगिल में क्या किया, इससे तो सब वाकिफ हैं। पीठ पर छूरा खाने के बावजूद पाकिस्तान के लिए बस जारी रही, देश की जनता तो तभी पाकिस्तान को बे’बस’ और बेदम करना चाहती थी लेकिन सरकार ने घुसपैठियों को भगाकर अपनी पीठ थपथपा ली। इस बस पर ब्रेक तब लगा जब 13 दिसंबर 2001 को हमारे लोकतंत्र पर जोरदार तमाचा मारा गया और लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन पर आतंकवादी हमला हुआ। अब आर-पार की लड़ाई का वक्त आ गया है, हम इसे नहीं भूलेंगे, पाकिस्तान को सबक सिखाना ही होगा और न जाने क्या-क्या भड़काऊ बातें करने के बाद सरकार का दम फूल गया और शांत बैठ गई।

2008 में मुंबई हमले और अब पाकिस्तानी में अमेरिका की कार्रवाई के बाद बीजेपी पाकिस्तान का खेल खत्म कर देना चाहती है। भले ही अपने राज में कारगिल जैसी लड़ाई और संसद पर हमले के वक्त वे कुछ नहीं कर पाए हों। सरकार चुप बैठी है और उस समय की सरकार भी चुप थी तो इसके पीछे कुछ न कुछ कारण तो जरूर होगा। जैसा कि पूर्व एयर मार्शल कपिल काक का कहना है ‘ऐसी कार्रवाई सिर्फ ताकत का दिखावा करने के लिए नहीं होनी चाहिए। जब तक हम उद्देश्य चिन्हित नहीं करते, हमें ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए।’ बात सिर्फ उद्देश्य चिन्हित करने तक ही होती तो बात और थी, यहां तो आपको उसके परिणामों के बारे में सोचना पड़ेगा। अगर आज आप पाकिस्तान पर हमला करते हैं तो आपको इस इस बात के लिए तो तैयार रहना ही पड़ेगा कि वो चुप नहीं बैठेगा। पाकिस्तान एक परमाणु सम्पन्न देश है और हमारे दूसरी तरफ ताक पर बैठा चीन हमारे इस परंपरागत दुश्मन का अच्छा इस्तेमाल करना भी जानता है।

ऐसी कोई भी कार्रवाई हुई तो पाकिस्तान के निशाने पर सबसे पहले दिल्ली, मुंबई, बैंगलूरु, अमृतसर, चंडीगढ़ और ऐसे ही बड़े-बड़े शहर होंगे। अगर आप इन शहरों की कीमत पर पाकिस्तान में छुपे बैठे आतंकवादियों की जड़ उखाड़ना चाहें तो आप उस पर हमला कर सकते हैं, लेकिन इतनी बड़ी कीमत चुकाने को कोई भी सरकार तैयार नहीं हो सकती। रही बात अमेरिका की कार्रवाई की तो, पहली बात ताकत के मामले में वो हमसे कहीं आगे है और दूसरी बात यह कि उसने पाकिस्तान को तमाचा जरूर मारा है लेकिन उससे पहले उसके मुंह में ढ़ेर सारा पैसा ठूंसा है, ताकि उसकी आवाज ही न निकल पाए। तीसरा बड़ा फायदा अमेरिका को यह है कि वह पाकिस्तान का पड़ोसी देश नहीं है। हजारों मील की दूरी पर बसे अमेरिका तक पाकिस्तान की कोई मिसाइल पहुंचे इससे पहले वह पाकिस्तान को 12वीं सदी में पहुंचा देगा। हमारे साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि हम दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन तो बना सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं चुन सकते। उसकी अदनी सी मिसाइल, मिसाइल छोड़ो छर्रे वाली बंदूक का छर्रा भी भारत पहुंच सकता है इसलिए पाकिस्तान पर हमला करने का विचार तब तक सही नहीं लगता जब तक आप अपने कुछ चमचमाते हुए हिस्सों को खोने को तैयार न हों।

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