हमारे देश के प्रधानमंत्री कौन हैं? इस सवाल का जवाब तो बच्चा बच्चा दे सकता है। जी हां अभी तक तो डॉ. मनमोहन सिंह ही हैं, आगे का रब जाने। प्रधानमंत्री यानि देश के सभी हाई प्रोफाइल मंत्रियों का आका। यानि देश को अपनी मुट्ठी में रखने और देश को चलाने वाले मंत्रियों का सरदार। ये अलग बात है कि वे वैसे भी सरदार हैं लेकिन ये सरदार कभी कभी ही खुश होता है। खैर मैं ये ब्लॉग मनमोहन सिंह के महिमामंडन के लिए तो लिख नहीं रहा हूं। बल्कि मैं तो उनके चरित्र के कुछ ऐसे गुणों की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं जिससे पता चलता है कि उनमें तानाशाही वाले सारे गुण हैं। किसी भी तानाशाह के बारे में सबसे पहली बात कौन सी आती है यही न कि वो अपनी ही जनता का दमन करता है। आज जिस कदर महंगाई है और वे अपने ही मंत्रियों पर इसे काबू में करने के लिए दबाव नहीं बना पा रहे हैं उस नजरिए से तो वे जनता का दमन ही कर रहे हैं।
एक तानाशाह लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखता लिहाजा वह न तो चुनाव चाहता है और न ही ऐसा होने देता है। हमारे प्रधानमंत्री की भी सबसे बड़ी खासियत यही है जनाब! उन्हें या तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं है या वे लोकतंत्रिक प्रक्रिया से डरते हैं। वैसे मुझे लगता है कि उन्हें इसमें विश्वास ही नहीं है अगर डरते तो दो बार प्रधानमंत्री थोड़े ही बनते। असल बात तो यह है कि उन्होंने अपनी जिन्दगी में आज तक सिर्फ एक बार 1998 के लोकसभा चुनाव में चुनाव लड़ा और हार गए। उसके बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा उसके बावजूद वे दो बार से देश के प्रधानमंत्री हैं और वित्त मंत्री रह चुके हैं। एक तानाशाह भी तो चुनाव में नहीं जाना चाहता, क्योंकि वह जानता है कि चुनाव में जाएगा तो हार जाएगा, ऐसा ही हाल हमारे पीएम साहब का है। भई वे तानाशाह न सही लेकिन वैसे शौक तो रख ही सकते हैं।
ताजा वाकिया असम विधानसभा चुनाव का है। वे आसाम से ही राज्यसभा के सदस्य हैं और वहीं पर उनका वोट है। वे चाहते तो डाक से भी अपना वोट डाल सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। फिर वही बात जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि पीएम साहब को चुनाव प्रक्रिया में विश्वास नहीं है और उन्हें तानाशाही वाले शौक भी हैं।
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पीएम को जनता के सामने एक उदाहरण्ा पेश्ा करना चाहिए, लेकिन उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं है। कम से कम सचिन से तो कुछ प्रेरण्ाा लें पीएम। सचिन ने करोड़ो रुपयों का श्ाराब कंपनी का विज्ञापन सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वो बहुत से लोगों के आदर्श्ा हैं। इसका साफ मतलब है कि पीएम न तो किसी के आदर्श्ा हैं और न ऐसा करने के बाद किसी के आदर्श्ा हो सकते हैं।
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