रास्ते सूने, सड़कें सूनी हैं
अजब ये संक्रमण काल है।
हम भी, तुम भी घर में बंद हैं,
कोरोना आया बनकर काल है।
कंकर भी न हिला आज रास्ते से,
सड़कें भी विधवा सी सूनी हैं।
तुम घर में रहो, सदा खुश रहो
तुमसे देश को उम्मीदें दूनी हैं।
पंछी, नदिया सब आगे बढ़ गए
आज हम अपने ही घर की सीढ़ियां चढ़ गए।
रास्ते सूने, सड़कें सूनी हैं,
बता तो फिजाओं को हम भी जुनूनी हैं।
अब हमने रार ठान ली है,
काल के कपाल पर नई इबारत लिख देंगे।
यू न हमारी हस्ती को मिटा पाएगा कोई,
हर मुसीबत को राह से हटाकर ही मानेंगे।
(c) दिगपाल सिंह
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