Friday, June 5, 2020

सुना था तू है, बचपन से मानता आया हूं के तू है

सुना था तू है,
बचपन से मानता आया हूं
के तू है।

तू है तो अपने होने का सुबूत दे
बचपन से ये मानता आया हूं
के तू है।

तू है तो क्यों भूखा मर रहा इंसान,
क्यों दर-बदर भटक रहा बेजान।
क्यों दाने-दाने वो मोहताज है,
इतने पर भी तुझे न लाज है?

मंदिर तेरे, मस्जिद तेरी
गुरुद्वारे और गिरिजाघर भी तेरे
फिर भी क्यों
भूखा पटरियों पर भूखे मर रहा इंसान

क्या तू भी अपने घर मैं कैद है?
क्या तुझे भी महामारी का डर है।
कहीं तू भी भूखा तो नहीं रह गया।
ले तू भी कुछ दिन का राशन ले जा।

मगर सुन, पैदल मत चल पड़ना,
अपने घर की तरफ
गर्मी बहुत है, पैर जल जाएंगे तेरे भी
रेल की पटरी से तो भी दूर रहना।

घर में तेरे भी कोई राह देखता होगा,
जो तिनका-तिनका बिखर गया,
सोच उसके घर वालों का क्या होगा?
तू भी ऐसे ही न मर जाना।

लड्डू-प्रसाद का भोग लगाया कभी,
कभी चढ़ावा भी चढ़ाया तेरे दर पर।
अब बारी तेरी है,
क्या ऐसे ही छोड़ देगा मुझे दर-बदर।

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