Tuesday, March 16, 2010

कोई इस्‍लामिक तस्‍वीर क्‍यों नहीं बनाई एमएफ हुसैन ने

पिछले दिनों भारत के पिकासो कहे जाने वाले मकबूल फिदा हुसैन से संबंधित खबरें जोरों पर रही। पहले खबर आई कि अब वे भारत के नागरिक नहीं रहेंगे और कतर ने उन्‍हें देश की नागरिकता स्‍वीकार करने का प्रस्‍ताव दिया है। इसके दो-चार दिन बाद ही खबर आई कि हुसैन ने कतर की नागरिकता स्‍वीकार कर ली है और वहीं भारतीय दूतावास में भारत का पासपोर्ट जमा करा दिया है। एक 95 वर्षीय व्‍यक्ति को इस तरह से अपना देश छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता हासिल करनी पडे तो यह दुख की बात तो है। लेकिन सुनने में यह खबर जितनी करुण दिखती है माफ कीजिए मुझे उतनी नहीं लगती।

यह तो आप जानते ही हैं कि हिन्‍दू देवियों के विवादास्‍पद नग्‍न चित्र बनाने के बाद भारत में दर्ज हुए कई मुकदमों के कारण करीब चार साल से स्‍वेच्‍छा से विदेश में रह रहे एम़एफ़ हुसैन के लिए यह प्रस्ताव स्वीकार करना एक मजबूरी भी था। उनके बेटे ओवैस ने पिता की भारतीय नागरिता त्‍यागकर कतर का नागरिक बनने के संबंध में कहा 'मेरे पिता स्‍वतंत्र भारत से भी ज्‍यादा उम्रदराज हैं।' उनकी इस बात को कोई नहीं काटता। ओवैश ने यह भी कहा कि उन्‍हें कई फोन आए, जिनमें से कई भड़काऊ भी थे लेकिन वे कभी नहीं झुके।

ओवैश के इस कथन पर मुझे थोड़ा आपत्ति है। आपत्ति यह है कि उनके पिता ने हिन्‍दू देवियों की नग्‍न तस्‍वीरें बनाई और इसके बाद उनके खिलाफ कई मुकदमें किए गए। क्‍या ऐसा ही प्रयोग हुसैन साहब इस्‍लाम के साथ भी करने की हिम्‍मत दिखा सकते हैं। अगर हां तो अब तक ऐसी हिम्‍मत क्‍यों नहीं हुई, अगर नहीं तो उसका कारण तो उन्‍हें सामने आकर स्‍वयं ही बताना चाहिए। एक कारण जो मुझे दिखता है वह तो यही है कि इस्‍लाम में मोहम्‍मद साहब या खुदा का बुत (तस्‍वीर) बनाने की इजाजत नहीं है, ऐसा करने वाले के खिलाफ तुरंत कोई न कोई फतवा जारी कर देता है। अगर वे इस्‍लाम को इस सिद्धत से मानते हैं तो उन्‍हें दूसरे धर्मों की भी उसी तरह इज्‍जत करनी चाहिए। हिन्‍दू धर्म में देवियों को पूजा जाता है, उनकी नग्‍न तस्‍वीर के बारे में बुरे से बुरा व्‍यक्ति भी नहीं सोच सकता, क्‍या उन्‍हें इस बात का इल्‍म नहीं था।

अगली बात इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी भारत सरकार एमएफ हुसैन को देश की शान बताते हुए उन्‍हें पूरी सुरक्षा मुहैया कराने का आश्‍वासन देकर वापस भारत लौटने का न्‍यौता देती है। भारत के गृह सचिव जी के पिल्लई ने तो यहां तक कहा कि हुसैन के खिलाफ कोई मामला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ चल रहे सभी मामलों को खत्म कर दिया है। विदेश सचिव निरूपमा राव ने भी कहा था कि वह चाहेंगी कि हुसैन खुद को भारत में सुरक्षित महसूस करें। इसमें मैं हुसैन साहब से एक बात पूछना चाहता हूं कि भारत जैसे धर्मनिर्पेक्ष देश में उन्‍होंने देवियों की नग्‍न तस्‍वीरें बनाई और सरकार उन्‍हें भारत की शान कहती है क्‍या वे कतर में रहकर इस्‍लाम के साथ ऐसा प्रयोग करके अपने आप को वहां महफूज महसूस कर सकते हैं।

3 comments:

  1. बेहतरीन, सटीक और क्रांतिकारी तरीके से भाव व्यक्त करके आपने सचमुच हुसैन साहब की सच्ची तस्वीर को नंगा किया है. यहाँ मेरा आक्रोश केवल इसलिए नहीं है की हुसैन साहब की कलाकृति हिन्दू थी या उन्होंने इस्लामिक आर्ट को अपने नंगे फेन से क्यों नहीं नवाज़ा. मेरा गुस्सा उस पिच्चानवे साल के रंगीले बुड्ढे के खिलाफ है जो अपनी पोती की उम्र से भी छोटी महिलाओ के जिस्म अपने केनवास पर उतारने को अपनी महानता बताता है. मेरे विचार से दुनिया के हर मज़हब के भगवान् बेहद खूबसूरत हैं. इस्लाम में फ़रिश्ते का भेजा एक पत्थर भी बेहद इज्ज़त और मुहब्बत से इबादत के लिए मोजूद है तो सिर्फ जिस्मानी खूबसूरती को पेंट करना कहाँ की समझदारी है? मेरी दुआ है की परवरदिगार, हुसैन साहब को मरने से पहले कुछ शर्मो हया अता फरमाएं जिस से उन्हें खूबसूरती के और भी नज़ारे दिखाई दें. वैसे कलम में ताक़त भी है और अंदाज़ करने का हुनर भी काबिल-ए-तारीफ़ है. मेरी तमाम दुआएं आपके साथ हैं. जय हिंद

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  2. हुसैन साहब ने क्या किया। उसमें कितना सही है और कितना गलत। यह तो हुसैन साहब ही जानते होंगे। मेरा तो एक ही बात कहना है कि हुसैन साहब को दो गज जमीन भी न मिली कूवै यार में।

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  3. अच्छा लिखा है। आपके लेख पर किए गए कमेंट कुछ ज्यादा ही भावनात्मक हैं। मेरा मानना है कि हमें भावुक होकर किसी चीज के बारे में नहीं सोचना चाहिए। अगर हम अपने इतिहास में देखें तो पाएंगे की प्राचीन काल में देवी के इसी नग्न रूप की पूजा होती आई है। हड़प्पा सभ्यता में मातृदेवी की नग्न मूर्ति जिसकी योनि से पौधा निकलता दिखाया गया है कि पूजा होती थी। यक्ष और यक्षिणी की पूजा में यक्षिणी की शारीरिक ढांचे को प्रमुखता दी जाती है। आज भी शिव लिंग की पूजा जारी है। शाक्त धर्म की तरफ अगर हम गौर करें तो उसमें जीवित व मृत महिलाओं के शारीरिक अंगों की पूजा होती है। आज भी कई ऐसे मत हैं, जैसे शैव धर्म में पाशुपत और कालामुख जिसमें खुले रूप में यौन क्रिया को महत्ता दी जाती है। एमएफ हुसैन ने तो चित्रों में कुछ खुलापन दिखाया। ओशो ने तो सेक्स से समाधि तक की थ्योरी देकर ईश्वर का मार्ग दिखाया। उन्होंने एक तरह से उनमुक्त सेक्स को ईश्वर प्राप्ति के लिए सही बताया। हिंदू धर्म बहुत विशाल है, जिसमें कई तरह की चीजें शामिल हैं। कोई पेंटिंग हिंदू धर्म को नुकसान नहीं पहुंचा सकती। यकीन न हो तो चले जाइए अजंता व एलोरा जहां उनमुक्त सेक्स को चित्रों में उकेरा गया है। यही नहीं कोणार्क मंदिर की भी कुछ ऐसी ही तस्वीर है। अभी इतना ही.......

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