भारत सरकार के अनुसार अगर आप दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों में रहते हैं और चार लोगों के परिवार के खाने पर 32 रुपए खर्च करते हैं तो आप गरीब नहीं है। यही नहीं छोटे शहरों और गांवों में 26 रुपए खर्च करने वाला परिवार गरीब नहीं होता।
हालांकि इस आंकड़े को कई बुद्धिजीवी लोग गरीबों के साथ सरकार द्वारा किया गया मजाक बता रहे हैं, कुछ को तो यह सितंबर माह में सरकार द्वारा गरीबों को अप्रैल फूल बनाया जाना लग रहा है। लेकिन जिस किसी भी व्यक्ति ने यह आंकड़ा बनाया है उसे देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया जाना तो बनता है बॉस। यही नहीं उस व्यक्ति को एक माह तक 32 रुपए में दो वक्त खाना खाकर एक आदर्श स्थापित करने का मौका भी दिया जाना चाहिए।
एक छोटा सा आंकड़ा दिल्ली सरकार का है, जिसमें सरकार ने पिछले दिनों राजधानी में कई जगह सरकारी फूड स्टॉल खोले। इन फूड स्टॉल पर एक वक्त का खाना (4 रोटी, सब्जी, दाल और चावल) 15 रुपए में मिलता है। मतलब दो वक्त के खाने पर खर्च आता है 30 रुपए, फिर भी केन्द्र सरकार के ताजा आंकड़े के अनुसार 2 रुपए बच जाते हैं। दिल्ली सरकार एक व्यक्ति को 15 रुपए में खाना खिला रही है और ताजा आंकड़ा 4 लोगों के परिवार का है। अब सोचें कि कैसे 32 रुपए में चार लोग खाना खा सकते हैं जबकि सरकार ही इतने में नहीं खिला पा रही है।
इसके अलावा एक और आंकड़ा है, इसके बाद आप ही बताएं कि इनमें से क्या कम किया जाए कि जिंदा बचे रह जाएं।
सरकारी राशन की दुकान पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए गेहूं 4.65 प्रति किलो मिलता है और एक महीने में प्रति परिवार 25 किलो गेहूं दिया जाता है। इस हिसाब से एक परिवार हर माह गेहूं पर कम से कम 116.25 रुपए खर्च करता है इसके अलावा गेहूं पिसाई पर वह और 50 रुपए खर्च करता है।
इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को राशन की दुकान से 6.15 प्रति किलो के हिसाब से 10 किलो चावल दिया जाता है। इस तरह एक परिवार प्रतिमाह कम से कम 61.50 रुपए चावल पर खर्च करता है। गेहूं और चावल कुल मिलकार 35 किलो अनाज गरीबों को दिया जाता है और अगर राशन वाले की मेहरबानी हुई तो करीब 30 किलो अनाज गरीब को मिल भी जाता है। कई जगह तो राशन वाले 5 किलो चावल और 10 किलो गेहूं पर ही गरीबों को टिका देते हैं। सरकार के अनुसार बेहतरीन अनाज गरीबों में वितरित होता है लेकिन किसी राशन की दुकान पर जाकर आप भी उस बेहतरीन अनाज की सच्चाई जान सकते हैं। इसके बाद उन्हें बाजार भाव से अनाज खरीदना पड़ता है जो बहुत महंगा होता है।
इसके अलावा पूरे महीने जिंदा रहने के लिए अगर एक व्यक्ति पूरे महीने सिर्फ एक ही दाल (पीली मटर दाल) खाता है तो 25 प्रति किलो के हिसाब से 4 किलो दाल पर वह 200 रुपए खर्च करता है। सिर्फ एक सब्जी आलू ही अगर गरीब महीने भर खाए तो वह 8 रुपए प्रति किलो के हिसाब से कम से कम 8 किलो आलू खाता है और उस पर खर्च आएगा 64 रुपए।
एक गरीब व्यक्ति महीने में कम से कम एक लीटर सरसों का तेल तो खाने पर इस्तेमाल कर ही लेता है इसका खर्च आया 65 रुपए। माना जाए कि गरीब महीने में सिर्फ एक रसोई गैस सिलेंडर से काम चला लेता है तो भी इस पर खर्च आया 400 रुपए। महीने भर में प्याज पर खर्च 100 रुपए। करीब 20 रुपए का लहसुन, अदरक आदि तो खा लेता है गरीब बेचारा। एक गरीब महीने भर में 100 रुपए चाय पत्ती पर, 150 रुपए चीनी और 390 रुपए दूध पर भी खर्च करता है। कम से कम 1 किलो नमक महीने भर में खाए तो भी 10 रुपए और करीब 50 रुपए टमाटर पर भी महीने भर में खर्च होते ही हैं। इस हिसाब से महीने का खर्च बनता है 1726.75 रुपए यानि प्रतिदन 57.56 रुपए। अब आप ही बताएं कि इसमें से कौन सी चीज न खाई जाए या कौन सी चीज कम की जाए कि खर्च 32 रुपए से कम हो, ताकि गरीबी रेखा से नीचे मिलने वाले सरकारी लाभ मिल सकें।
गेहूं 4.65 प्रति किलो (25 किलो): 116.25 (एपीएल पर 6.65 प्रति किलो)
चावल 6.15 प्रति किलो (10 किलो): 61.50 (एपीएल पर 9.15 प्रति किलो)
पीली मटर दाल 25.00 प्रति किलो: 200.00
आलू: 8.00 प्रति किलो/ 8 किलो: 64.00
महीने का सरसों का तेल: 65.00
रसोई गैस: 400.00
माह भर का प्याज: 100.00
माह भर का लहसुन: 20.00
माह भर का चाय: 100.00
माह भर का चीनी: 150.00
माह भर का टमाटर: 50.00
माह भर का दूध (प्रतिदिन आधा किलो): 390.00
माह भर का नमक: 10.00
कुल खाने पर खर्च : 1726.75 रुपए। यानि प्रतिदन 57.56 रुपए। ये तो तब है मिर्च-मसाले व अन्य चीजें इसमें शामिल नहीं हैं।
इनके अलावा खर्चे और भी जिन्हें जोड़ दें तो सरकार का गरीबी रेखा का आंकड़ा शर्मसार हो जाएगा।
माह भर का पानी बिल = 50.00
कमरे का किराया : 1000.00
माह भर का बिजली बिल = 100.00
इनके अलावा साबुन, मसाले, छोटी-मोटी बीमारी और दवा पर खर्च, आने जाने का बस का किराया व अन्य।
हालांकि इस आंकड़े को कई बुद्धिजीवी लोग गरीबों के साथ सरकार द्वारा किया गया मजाक बता रहे हैं, कुछ को तो यह सितंबर माह में सरकार द्वारा गरीबों को अप्रैल फूल बनाया जाना लग रहा है। लेकिन जिस किसी भी व्यक्ति ने यह आंकड़ा बनाया है उसे देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया जाना तो बनता है बॉस। यही नहीं उस व्यक्ति को एक माह तक 32 रुपए में दो वक्त खाना खाकर एक आदर्श स्थापित करने का मौका भी दिया जाना चाहिए।
एक छोटा सा आंकड़ा दिल्ली सरकार का है, जिसमें सरकार ने पिछले दिनों राजधानी में कई जगह सरकारी फूड स्टॉल खोले। इन फूड स्टॉल पर एक वक्त का खाना (4 रोटी, सब्जी, दाल और चावल) 15 रुपए में मिलता है। मतलब दो वक्त के खाने पर खर्च आता है 30 रुपए, फिर भी केन्द्र सरकार के ताजा आंकड़े के अनुसार 2 रुपए बच जाते हैं। दिल्ली सरकार एक व्यक्ति को 15 रुपए में खाना खिला रही है और ताजा आंकड़ा 4 लोगों के परिवार का है। अब सोचें कि कैसे 32 रुपए में चार लोग खाना खा सकते हैं जबकि सरकार ही इतने में नहीं खिला पा रही है।
इसके अलावा एक और आंकड़ा है, इसके बाद आप ही बताएं कि इनमें से क्या कम किया जाए कि जिंदा बचे रह जाएं।
सरकारी राशन की दुकान पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए गेहूं 4.65 प्रति किलो मिलता है और एक महीने में प्रति परिवार 25 किलो गेहूं दिया जाता है। इस हिसाब से एक परिवार हर माह गेहूं पर कम से कम 116.25 रुपए खर्च करता है इसके अलावा गेहूं पिसाई पर वह और 50 रुपए खर्च करता है।
इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को राशन की दुकान से 6.15 प्रति किलो के हिसाब से 10 किलो चावल दिया जाता है। इस तरह एक परिवार प्रतिमाह कम से कम 61.50 रुपए चावल पर खर्च करता है। गेहूं और चावल कुल मिलकार 35 किलो अनाज गरीबों को दिया जाता है और अगर राशन वाले की मेहरबानी हुई तो करीब 30 किलो अनाज गरीब को मिल भी जाता है। कई जगह तो राशन वाले 5 किलो चावल और 10 किलो गेहूं पर ही गरीबों को टिका देते हैं। सरकार के अनुसार बेहतरीन अनाज गरीबों में वितरित होता है लेकिन किसी राशन की दुकान पर जाकर आप भी उस बेहतरीन अनाज की सच्चाई जान सकते हैं। इसके बाद उन्हें बाजार भाव से अनाज खरीदना पड़ता है जो बहुत महंगा होता है।
इसके अलावा पूरे महीने जिंदा रहने के लिए अगर एक व्यक्ति पूरे महीने सिर्फ एक ही दाल (पीली मटर दाल) खाता है तो 25 प्रति किलो के हिसाब से 4 किलो दाल पर वह 200 रुपए खर्च करता है। सिर्फ एक सब्जी आलू ही अगर गरीब महीने भर खाए तो वह 8 रुपए प्रति किलो के हिसाब से कम से कम 8 किलो आलू खाता है और उस पर खर्च आएगा 64 रुपए।
एक गरीब व्यक्ति महीने में कम से कम एक लीटर सरसों का तेल तो खाने पर इस्तेमाल कर ही लेता है इसका खर्च आया 65 रुपए। माना जाए कि गरीब महीने में सिर्फ एक रसोई गैस सिलेंडर से काम चला लेता है तो भी इस पर खर्च आया 400 रुपए। महीने भर में प्याज पर खर्च 100 रुपए। करीब 20 रुपए का लहसुन, अदरक आदि तो खा लेता है गरीब बेचारा। एक गरीब महीने भर में 100 रुपए चाय पत्ती पर, 150 रुपए चीनी और 390 रुपए दूध पर भी खर्च करता है। कम से कम 1 किलो नमक महीने भर में खाए तो भी 10 रुपए और करीब 50 रुपए टमाटर पर भी महीने भर में खर्च होते ही हैं। इस हिसाब से महीने का खर्च बनता है 1726.75 रुपए यानि प्रतिदन 57.56 रुपए। अब आप ही बताएं कि इसमें से कौन सी चीज न खाई जाए या कौन सी चीज कम की जाए कि खर्च 32 रुपए से कम हो, ताकि गरीबी रेखा से नीचे मिलने वाले सरकारी लाभ मिल सकें।
गेहूं 4.65 प्रति किलो (25 किलो): 116.25 (एपीएल पर 6.65 प्रति किलो)
चावल 6.15 प्रति किलो (10 किलो): 61.50 (एपीएल पर 9.15 प्रति किलो)
पीली मटर दाल 25.00 प्रति किलो: 200.00
आलू: 8.00 प्रति किलो/ 8 किलो: 64.00
महीने का सरसों का तेल: 65.00
रसोई गैस: 400.00
माह भर का प्याज: 100.00
माह भर का लहसुन: 20.00
माह भर का चाय: 100.00
माह भर का चीनी: 150.00
माह भर का टमाटर: 50.00
माह भर का दूध (प्रतिदिन आधा किलो): 390.00
माह भर का नमक: 10.00
कुल खाने पर खर्च : 1726.75 रुपए। यानि प्रतिदन 57.56 रुपए। ये तो तब है मिर्च-मसाले व अन्य चीजें इसमें शामिल नहीं हैं।
इनके अलावा खर्चे और भी जिन्हें जोड़ दें तो सरकार का गरीबी रेखा का आंकड़ा शर्मसार हो जाएगा।
माह भर का पानी बिल = 50.00
कमरे का किराया : 1000.00
माह भर का बिजली बिल = 100.00
इनके अलावा साबुन, मसाले, छोटी-मोटी बीमारी और दवा पर खर्च, आने जाने का बस का किराया व अन्य।
mazaak to hai hi ye hindustaan ki janta ke sath.... goli mardeni chaiye jisne ye आंकड़े nikale hai
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