Saturday, August 27, 2011

फिर बज उठेगी रणभेरी

फिर बज उठेगी रणभेरी
फिर से गूंजेगा इंकलाब
फिर से एक नया सवेरा होगा
वतन पर मर मिटने वाला
फिर कोई उठ खड़ा होगा।

एक नये सवेरे की चाहत में
एक नई लौ जल उठी है
उम्मीद की रौशनी से रौशन
जिंदगी अब अपने अतीत से रूठी है
अब तो सूरज उगने वाला है।

अब सूरज उगने वाला है
अब कहीं किसी आतताई की नहीं चलेगी
अब तो मंद मंद पूर्वा चलेगी
उठ खड़े होंगे भारत मां के वीर सपूत
अब भ्रष्टाचारियों की बैंड बजेगी।

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