मेरे डायरेक्टर और फिल्मों की कहानी लिखने वाले राइटर भाईयो आजकल आपको हो क्या गया है? आप बनाते तो लव स्टोरी हो, लेकिन अंत तक आते-आते हीरो-हिरोइन को मिलाने की बजाए दोनों में से एक को मार देते हो. आखिर हो क्या गया है आपको. क्यों आप दो प्यार करने वाले दिलों को मिलने नहीं दे रहे. हमारे हिन्दी फिल्मों के इतिहास में हीरो-हिराइन के दुश्मन वैसे ही कौन से कम थे, जो आप लोग उनकी जान के पीछे पड़ गए हो.
कभी प्रेम चोपड़ा ने अपनी चतुर चालों से प्रेमियों के राहों में कांटे विछाए तो कभी मोगेंबो खुश हुआ तो आशिकों की जान सूख गई. शाकाल ने भी कम जुल्म नहीं ढाऐ दो प्यार करने वाले दिलों पर. प्राण साहब का इंतकाल हुए अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे हैं, लेकिन भगवान माफ करे उनके कर्मों के कारण आशिकों के दिलों से खूब बददुआएं निकली होंगी. टाइगर अजित को कोई कैसे भूल सकता है. जीवन ने तो आशिकों की पिटाई करने से भी गुरेज नहीं किया. ललिता पवार ने कभी सास बनकर तो कभी कुछ और बेटे का प्यार यानी अपनी बहू पर जो जुल्म ढाए वो पर्दे से बाहर भी निकल आए.
गब्बर सिंह तो सभी विलनों का बाप निकला, उसने तो वीरू की फूल सी नाजुक प्रेमिका बसंती को टूटे कांच पर नाचने के लिए मजबूर कर दिया था. वैसे एक बात बताऊं हमारे हीरो इन विलनों से पार पा कर अपनी हीरोइन को ले उड़े, लेकिन आप तो सच में बड़े वाले हो यार!
कुछ साल पहले 'गजिनी' फिल्म देखी थी. फिल्म देखकर हॉल से बाहर आया तो एक ही दुख सता रहा था, यार संजय सिंघानिया अपनी प्रेमिका कल्पना को अपनी सच्चाई नहीं बता पाया और वो मर गई. हाल के दिनों में तीन फिल्में देखी हैं और यहां पर भी आप लोगों ने दर्द को दिल की गहराई में सूल की तरह उतार दिया. 'रांझणा' देखी यहां पूरी फिल्म में हीरोइन से चांटे खाते रहे हीरो को जब अपनी प्रेमिका मिल सकती थी, ठीक उसी समय पर आपने उसे मार दिया. फिल्म 'लुटेरा' में प्यार एक बार फिर से परवान चढ़ता लेकिन उससे पहले ही लेखक साहब आपने पुरानी फिल्मों के जज की तरह अपनी कलम की नोंक तोड़ दी. तीसरी फिल्म, जिसने 'गजिनी' के बाद सबसे ज्यादा दुख दिया वह थी 'आशिकी-2'. आपकी तो नजर, नीयत और दिमाग सब कुछ खराब है. पहली वाली 'आशिकी' में सारे दुख-दर्द झेलकर भी अंत में हीरो-हिरोइन मिलते हैं तो हर युवा के दिल में प्यार का फूल खिलने लगता है. लेकिन आपको दूसरों की खुशी कहां अच्छी लगती है? 'आशिकी-2' में सब कुछ अच्छा चल रहा था, हिरोइन पल-पल हीरो का साथ दे रही थी, हीरो ने भी सुधरने का वादा कर लिया था, लेकिन आपने उसे समुद्र में कुदा दिया.
देखिए आशिकों की बददुआएं मत लीजिए. आशिकों की बददुआएं बहुत बुरी होती हैं. कबीर दास का दोहा तो सुना ही होगा आपने - दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय। मरी खाल की सांस से, लोह भस्म हो जाय।। भईया पूरी राम कहानी का सार यह है कि आशिकों को मिलाकर कुछ अच्छा काम कर लो.
कभी प्रेम चोपड़ा ने अपनी चतुर चालों से प्रेमियों के राहों में कांटे विछाए तो कभी मोगेंबो खुश हुआ तो आशिकों की जान सूख गई. शाकाल ने भी कम जुल्म नहीं ढाऐ दो प्यार करने वाले दिलों पर. प्राण साहब का इंतकाल हुए अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे हैं, लेकिन भगवान माफ करे उनके कर्मों के कारण आशिकों के दिलों से खूब बददुआएं निकली होंगी. टाइगर अजित को कोई कैसे भूल सकता है. जीवन ने तो आशिकों की पिटाई करने से भी गुरेज नहीं किया. ललिता पवार ने कभी सास बनकर तो कभी कुछ और बेटे का प्यार यानी अपनी बहू पर जो जुल्म ढाए वो पर्दे से बाहर भी निकल आए.
गब्बर सिंह तो सभी विलनों का बाप निकला, उसने तो वीरू की फूल सी नाजुक प्रेमिका बसंती को टूटे कांच पर नाचने के लिए मजबूर कर दिया था. वैसे एक बात बताऊं हमारे हीरो इन विलनों से पार पा कर अपनी हीरोइन को ले उड़े, लेकिन आप तो सच में बड़े वाले हो यार!
कुछ साल पहले 'गजिनी' फिल्म देखी थी. फिल्म देखकर हॉल से बाहर आया तो एक ही दुख सता रहा था, यार संजय सिंघानिया अपनी प्रेमिका कल्पना को अपनी सच्चाई नहीं बता पाया और वो मर गई. हाल के दिनों में तीन फिल्में देखी हैं और यहां पर भी आप लोगों ने दर्द को दिल की गहराई में सूल की तरह उतार दिया. 'रांझणा' देखी यहां पूरी फिल्म में हीरोइन से चांटे खाते रहे हीरो को जब अपनी प्रेमिका मिल सकती थी, ठीक उसी समय पर आपने उसे मार दिया. फिल्म 'लुटेरा' में प्यार एक बार फिर से परवान चढ़ता लेकिन उससे पहले ही लेखक साहब आपने पुरानी फिल्मों के जज की तरह अपनी कलम की नोंक तोड़ दी. तीसरी फिल्म, जिसने 'गजिनी' के बाद सबसे ज्यादा दुख दिया वह थी 'आशिकी-2'. आपकी तो नजर, नीयत और दिमाग सब कुछ खराब है. पहली वाली 'आशिकी' में सारे दुख-दर्द झेलकर भी अंत में हीरो-हिरोइन मिलते हैं तो हर युवा के दिल में प्यार का फूल खिलने लगता है. लेकिन आपको दूसरों की खुशी कहां अच्छी लगती है? 'आशिकी-2' में सब कुछ अच्छा चल रहा था, हिरोइन पल-पल हीरो का साथ दे रही थी, हीरो ने भी सुधरने का वादा कर लिया था, लेकिन आपने उसे समुद्र में कुदा दिया.
देखिए आशिकों की बददुआएं मत लीजिए. आशिकों की बददुआएं बहुत बुरी होती हैं. कबीर दास का दोहा तो सुना ही होगा आपने - दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय। मरी खाल की सांस से, लोह भस्म हो जाय।। भईया पूरी राम कहानी का सार यह है कि आशिकों को मिलाकर कुछ अच्छा काम कर लो.
आप तो जानते ही हैं आशिकों के कितने दुश्मन इस बॉलीवुड में पहले से ही हैं. प्रेम नाथ, रंजीत, आउ लौलिता कहने वाले शक्ति कपूर, कादर खान, डैनी, अनुपम खेर, नसीरउद्दीन शाह, गुल्शन ग्रोवर, परेश रावल, सदाशिव अमरापुरकर, आशुतोष राणा, रजा मुराद, किरन कुमार, मोहन अगाशे, आशीष विद्यार्थी, आदित्य पंचोली, गोविंद नामदेव, शरत सक्सेना, राहुल देव, पंकज कपूर, बोमन इरानी और न जाने कितने विलन हुए इस फिल्म इंडस्ट्री में जिन्होंने आशिकों का जीना मुहाल किए रखा है. अब आप लोग भी प्यार के सुंदर गीत गाने वाले इन आशिकों की जान के पीछे पड़ जाएंगे तो फिर प्यार के दो फूल कैसे खिलेंगे?
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