Tuesday, October 25, 2016

बड़ा घना तेरी अज्ञानता का अंधकार है

मुझ पर मेरे रब की रहमत बरसती है
तेरी नजर-ए-इनायत की जरूरत नहीं,
तुझे खुश करने में क्यों वक्त ज़ाया करूं
अच्छा है मैं दिन-रात उसकी इबादत करूं।

छोटा है तू अभी बहुत, फिर भी...
घमंड से भरा हुआ है,
रावण बन जाता तो फिर भी कोई बात थी
खर-दूषण के आगे क्या शीश नवाऊं।

रावण तो फिर भी ज्ञानी था
राक्षसी सेना से भरपूर साथ मिला,
बड़ा घना तेरी अज्ञानता का अंधकार है
तेरी ही तरह तेरी सेना भी बेकार है।

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