जानता हूं मैं, बेशर्म है तू बहुत,
तेरी बेशर्मी का क्या जिक्र करूं।
जीता हूं मैं जिंदादिली से,
तेरी नाराजगी की क्यों फिक्र करूं।
बात-बात पर तेरे चेहरे पर आती कुटिल मुस्कान,
तेरी बेहया हरकतों का क्या जिक्र करूं।
किसी संपोले की याद दिलाता है तू मुझे,
डंक निकालना जानता हूं, तो क्यों फिक्र करूं।
कुनबे के साथ हमेशा बिल में ही छुपा रहेगा?
या फिर कभी तो बाहर भी आएगा।
जानता हूं तेरे फन को कुचल दूंगा मैं एक दिन,
इसलिए बेफिक्र हूं, क्यों मैं तेरी फिक्र करूं।
No comments:
Post a Comment