हीरे की कद्र तो आम जौहरी को भी पता नहीं,
फिर तू तो छोटा-मोटा कबाड़ी है।
मेरी काबीलियत को क्या आंकेगा,
कचड़ा इकट्ठा करने वाला है तू, तेरी वो औकात नहीं।
शून्य का भी अपना बड़ा महत्व होता है
शायद ये तेरी तिल जैसी खोपड़ी में रत्तीभर घुसा नहीं।
तेरी घटिया सोच के कारण ही सही
आज मैंने ब्रह्मांण को आत्मसात कर लिया।
No comments:
Post a Comment