Thursday, November 10, 2016

आज फिर नई राह पर चल पड़ा हूं...

पुराने रास्तों से मुंह मोड़ चला हूं,
आज फिर नई राह पर चल पड़ा हूं।
नई सुबह है, नई राह और नई मंजिल भी
सूरज का दामन थाम, आगे बढ़ चला हूं।

उगते सूरज सी लालिमा चेहरे पर लिए
चढ़ते सूरज सी तपिश हौसलों में है,
कल की बात को कल में ही दफन कर
आज फिर नई राह पर चल पड़ा हूं।

अडिग-अचल हिमालय जैसे इरादे लिए
दिल में गंगा सी निर्मलता और आंखों में वेग लिए
अपने सागर की तरफ बढ़ चला हूं,
अपने हर अरमान का 'जागरण' कर चला हूं।

- (C) दिगपाल सिंह 

No comments:

Post a Comment