Wednesday, November 30, 2016

सुधर जा... 'ये वक्त हमेशा नहीं रहेगा'

अब सुबह के साथ दिन होता है,
सूरज छिपने के साथ होती है रात।
ऐसी प्यारी भी जिंदगी होती है,
ऐसे में क्या करूं उस असंस्कारी की बात।

घोटालों के सरदार के साथ फंसा था,
उसने एक नया व्यापमं जो गड़ा था।
अभिमानी और ब्राह्मण दोनों था,
लेकिन रावण का अंश मात्र भी न था।

न जाने किसने उसे यहां तक पहुंचा दिया,
जैसे कीचड़ में रहने वाले जानवर को घर में पाल लिया।
मैं बस इतना कहूंगा, सुधर जा... 'ये वक्त हमेशा नहीं रहेगा'
मेरा बुरा नहीं रहा, तेरा हमेशा अच्छा नहीं रहेगा।

(C) दिगपाल सिंह

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