Friday, June 5, 2020

मैं बुलाऊंगा तुम्हें ऐ दोस्त तुम चले आना

मैं बुलाऊंगा तुम्हें ऐ दोस्त
तुम चले आना।
खुशियां जो पीछे छूट गईं थीं,
उन्हें साथ में लाना।
अकेले तुम्हें घर में एंट्री मिलेगी नहीं,
भाभी को भी संग लाना।

मैं बुलाऊंगा तुम्हें ऐ दोस्त
तुम चले आना।
खुशियां जो पीछे छूट गईं थीं,
उन्हें साथ में लाना।
आ ही रहे हो तो एक गठरी भरकर
बचपन की यादें भी लाना।
बचपन की यादों में खो जाएंगे हम,
कुछ पुराने किस्से ले आना।

खुशियां जो पीछे छूट गईं थीं,
उन्हें साथ में लाना।
तुम आओगे तो महफिल सजेगी,
दो बियर भी ले आना।

मैं फिर खूब उत्सव मनाऊंगा

लौट आऊंगा मैं एक दिन,
फिर उत्सव मनाऊंगा।
नवरात्र पर व्रत-पूजा करके,
कंजक भी सजाऊंगा।

रक्षाबंधन के त्योहार में,
बहनों संग खूब प्यार लुटाऊंगा।
आएंगे कान्हा भी हमारे घर,
जन्माष्ठमी का त्योहार मनाऊंगा।

मैं फिर खूब उत्सव मनाऊंगा।

सफाई के लिए जुटाऊंगा सबको,
स्वछता का मंत्र भी सिखाऊंगा।
फिर होगी दोस्तों संग हंसी-ठिठोली
लॉन्ग ड्राइव पर भी ले जाऊंगा।

गजनान को भी घर बुलाएंगे,
गणपति बप्पा मोरया चिल्लाऊंगा।
लौट आएगी वो खोई रंगत एक दिन
मैं फिर खूब उत्सव मनाऊंगा।

बड़ा दुखी था मैं इस साल,
अगले बरस बिटिया का जन्मदिन धूम-धाम से मनाऊंगा।
कोरोना के रावण का दहन करके
हर्षोल्लास से दीपोत्सव मनाऊंगा।

बच्चों में खुशियां बांटने को,
सेंटा बनकर आऊंगा।
नए साल का स्वागत भी होगा
दोस्तों संग कुछ जाम भी छलकाऊंगा।

मैं फिर खूब उत्सव मनाऊंगा।

पंचमी पर मां शारदा की पूजा कर,
तिल-कुट का भोग लगाऊंगा।
और फिर फाग में रंग-गुलाल उड़ाकर,
दोस्तों संग होली खूब मनाऊंगा।
मैं फिर खूब उत्सव मनाऊंगा।

जी, बॉस दफ्तर भी आऊंगा
आपके साथ चाय पर चर्चा कर
बोर्ड रूम की लंबी मीटिंग में,
आगे का प्लान भी बनाऊंगा।

सुना था तू है, बचपन से मानता आया हूं के तू है

सुना था तू है,
बचपन से मानता आया हूं
के तू है।

तू है तो अपने होने का सुबूत दे
बचपन से ये मानता आया हूं
के तू है।

तू है तो क्यों भूखा मर रहा इंसान,
क्यों दर-बदर भटक रहा बेजान।
क्यों दाने-दाने वो मोहताज है,
इतने पर भी तुझे न लाज है?

मंदिर तेरे, मस्जिद तेरी
गुरुद्वारे और गिरिजाघर भी तेरे
फिर भी क्यों
भूखा पटरियों पर भूखे मर रहा इंसान

क्या तू भी अपने घर मैं कैद है?
क्या तुझे भी महामारी का डर है।
कहीं तू भी भूखा तो नहीं रह गया।
ले तू भी कुछ दिन का राशन ले जा।

मगर सुन, पैदल मत चल पड़ना,
अपने घर की तरफ
गर्मी बहुत है, पैर जल जाएंगे तेरे भी
रेल की पटरी से तो भी दूर रहना।

घर में तेरे भी कोई राह देखता होगा,
जो तिनका-तिनका बिखर गया,
सोच उसके घर वालों का क्या होगा?
तू भी ऐसे ही न मर जाना।

लड्डू-प्रसाद का भोग लगाया कभी,
कभी चढ़ावा भी चढ़ाया तेरे दर पर।
अब बारी तेरी है,
क्या ऐसे ही छोड़ देगा मुझे दर-बदर।