सबसे पहले मेरे घर का
अंडे जैसा था आकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-सा ही है संसार।
फिर मेरा घर बना दुकान का शटर
टिन की चादर से तैयार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-सा ही है संसार।
फिर मैं निकल गई बिल्डिंगों पर
ऊंची-ऊंची थीं जो बेकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-सा ही है संसार।
आखिर जब मैंने आसमान में
उड़ने की कोशिश की हजार
हर तरफ बिल्डिंगें ही नजर आईं
पेड़-पौधों से धरती पायी बेजार
तब मेरी समझ में आया
बहुत ही नर्लज
बड़ा ही बेशर्म
है यह इंसान बड़ा ही बेकार।
(C) Digpal Singh Jeena
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