Monday, October 31, 2016

कचड़ा इकट्ठा करने वाला है तू, तेरी 'वो' औकात नहीं


हीरे की कद्र तो आम जौहरी को भी पता नहीं,
फिर तू तो छोटा-मोटा कबाड़ी है।
मेरी काबीलियत को क्या आंकेगा,
कचड़ा इकट्ठा करने वाला है तू, तेरी वो औकात नहीं।

शून्य का भी अपना बड़ा महत्व होता है
शायद ये तेरी तिल जैसी खोपड़ी में रत्तीभर घुसा नहीं।
तेरी घटिया सोच के कारण ही सही
आज मैंने ब्रह्मांण को आत्मसात कर लिया।

Wednesday, October 26, 2016

जानता हूं मैं, बेशर्म है तू बहुत

जानता हूं मैं, बेशर्म है तू बहुत,
तेरी बेशर्मी का क्या जिक्र करूं।
जीता हूं मैं जिंदादिली से,
तेरी नाराजगी की क्यों फिक्र करूं।

बात-बात पर तेरे चेहरे पर आती कुटिल मुस्कान,
तेरी बेहया हरकतों का क्या जिक्र करूं।
किसी संपोले की याद दिलाता है तू मुझे,
डंक निकालना जानता हूं, तो क्यों फिक्र करूं।

कुनबे के साथ हमेशा बिल में ही छुपा रहेगा?
या फिर कभी तो बाहर भी आएगा।
जानता हूं तेरे फन को कुचल दूंगा मैं एक दिन,
इसलिए बेफिक्र हूं, क्यों मैं तेरी फिक्र करूं।

Tuesday, October 25, 2016

बड़ा घना तेरी अज्ञानता का अंधकार है

मुझ पर मेरे रब की रहमत बरसती है
तेरी नजर-ए-इनायत की जरूरत नहीं,
तुझे खुश करने में क्यों वक्त ज़ाया करूं
अच्छा है मैं दिन-रात उसकी इबादत करूं।

छोटा है तू अभी बहुत, फिर भी...
घमंड से भरा हुआ है,
रावण बन जाता तो फिर भी कोई बात थी
खर-दूषण के आगे क्या शीश नवाऊं।

रावण तो फिर भी ज्ञानी था
राक्षसी सेना से भरपूर साथ मिला,
बड़ा घना तेरी अज्ञानता का अंधकार है
तेरी ही तरह तेरी सेना भी बेकार है।