इच्छामृत्यु की 'गुजारिश' खारिज। ये हैडिंग लगाकर हमने भी अपनी पीठ थपथपाई की 'भई वाह! जबरदस्त हैडिंग लग गई है, गुजारिश फिल्म का नाम भी आ गया जिसमें इच्छा मृत्यु का विषय है।' लेकिन अरुणा को न्याय कब मिलेगा और अरुणा को इतनी बड़ी सजा क्यों?
जी हां, मेरा ये सवाल हर उस व्यक्ति से है जो अपने आप को बुद्धिमान मानता है और कैपिटल पनिशनमेंट (सजा ए मौत) का विरोध करता है। ये सवाल देश के उन तथाकथित विचारवान (थिंकटैंक) लोगों के लिए भी है जो टीवी स्टूडियो में बैठकर या रैलियां निकालकर मौत की सजा का विरोध करते हैं। वैसे मौत की सजा का विरोधी मैं खुद भी हूं लेकिन मैं अपने आप को उन तथाकथित विचारवान लोगों से अलग मानता हूं, ऐसा क्यों वो आप आगे समझ जाएंगे। पहले अरुणा शानबाग की बात कर ली जाए, जो पिछले 37 सालों से सजा भुगत रही हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आगे भी वह सजा की हकदार हैं।
अरुणा के केस पर एक नजर-
सुप्रीम कोर्ट ने अब 60 साल की हो चुकी पूर्व नर्स की इच्छामृत्यु की याचिका को खारिज कर दिया। अरुणा के साथ मुंबई के केईएम अस्पताल में 27 नवंबर 1973 को अप्राकृतिक बलात्कार (रेप) हुआ था। अरुणा उस समय इसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम करती थी। सफाईकर्मी ने बलात्कार के दौरान अरुणा की गर्दन में कुत्ते को बांधने वाली चेन लपेटकर इसे झटक दिया, जिससे वह कोमा में चली गई। तब से अब तक 37 साल का लंबा समय गुजर चुका है लेकिन अरुणा की बेहोशी नहीं टूटी है।
उस दरिंदे ने अरुणा से बलात्कार करने की कोशिश की, लेकिन यह जानने के बाद कि वह मासिक धर्म से है, उसने अप्राकृतिक दुष्कर्म किया। अरुणा विरोध न कर पाए, इसलिए उसकी गर्दन से चेन लपेटकर उसे झटक दिया। जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद वह मौके से फरार हो गया। बाद में पकड़ा भी गया तो 7 साल की कैद के बाद वह आसानी से छूट गया और अरुणा आज भी सजा भुगत रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मार्कंडेय काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने अरुणा को एक्टिव यूथेनेसिया (ऐसी इच्छामत्यु जिसमें रोगी का जीवन कोई इंजेक्शन इत्यादि देकर खत्म किया जाए) की इजाजत तो नहीं दी। फिर भी असाधारण परिस्थितियों में पैसिव यूथेनेसिया (ऐसी इच्छामत्यु जब रोगी का इलाज बंद कर दिया जाए या उसे जीवनरक्षक उपकरणों से हटा लिया जाए) की इजाजत देने की बात कही।
वापस अपने लेख पर आते हैं-
जिस परोक्ष मृत्यु की बात कोर्ट ने की है उसके अनुसार तो अरुण भूख से, सांस न मिलने से और ईलाज की कमी से तड़प-तड़पकर मर जाएंगी। इससे तो बेहतर यही होगा कि उन्हें मौत (जहर) का इंजेक्शन देकर आसानी से मरने दिया जाए।
एक सवाल- अरुणा को सजा क्यों?
अरुणा पिछले 37 सालों से सजा भुगत रही है, जबकि उनकी कोई गलती भी नहीं थी। दूसरी तरफ वो दरिंदा जिसने अरुणा को इस हालत में पहुंचाया वह सिर्फ 7 साल की सजा काटकर आराम से जेल से बाहर आ गया। जैसा कि मैंने पहले कहा था मैं भी सजा ए मौत के खिलाफ हूं, ये किसी दया भाव से नहीं बल्कि मैं ऐसे दरिंदों के लिए इससे भी कड़ी सजा चाहता हूं इसलिए। कोई गलती नहीं होने के बावजूद अरुणा पिछले लगभग 4 दशकों से ये सजा भुगत रही हैं और उनकी तरफ से मौत की भीख मांगी जा रही है। मेरा सवाल कोर्ट और उन तथाकथित विचारवान लोगों से यह है कि उस दरिंदे को ऐसी सजा क्यों न मिले कि वह मौत की भीख मांगे और उसे वह भी नसीब न हो। सजा बर्बर जरूर होगी लेकिन गुनहगारों के लिए बिल्कुल सटीक, जैसे बलात्कार करने वाले का लिंग, दोनों पैर व एक हाथ काटकर छोड़ दिया जाए। मुझसे कई लोग सहमत तो नहीं होंगे लेकिन इस सजा से गुनहगारों के दिलों में खौप बैठ जाएगा। असली सजा तो यही होगी भले ही कोई माने या न माने।
आप ऐसे गुनहगारों के लिए क्या सजा चाहते हैं और क्या वह सही होगी, अरुणा को अपना करीबी मानकर कृपया अपनी राय जरूर दें।
सही कहा दिगपाल, हाथ या पैर नहीं, बलात्कारियों का लिंग काट देना चाहिए. ताकि जिस चीज के गुरुर में वे ये अपराध करते हैं उसके न होने का दर्द और शर्म ताउम्र महसूस कर सकें. ठीक वैसे ही जैसे एक स्त्री के मन से वह घटना मिटाए नहीं मिट सकती. रही अरूणा की बात, तो उसके लिए इतना ही कहूंगी जीवन अनुभावों का नाम है, क्या पता उसके नसीब में एक अच्छा और सुखी जीवन हो...
ReplyDeleteजीवन नहीं मरा करता है.