Thursday, March 17, 2011

मनमोहन सिंह एक ईमानदार प्रधानमंत्री... जोक पुराना हो गया सर

मनमोहन सिंह एक ईमानदार प्रधानमंत्री हैं और उनकी पाक साफ छवि पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। नहीं नहीं ये मजाक था, मारना मत। अब सच में ऐसे ही हालात हो गए हैं कि आप कहें मनमोहन सिंह ईमानदार है और आपको कोई धोबी पछाड़ दे दे। ऐसे हालात से बचना है तो रोज अखबार पढ़ो, टीवी पर खबरें देखो और सुनो, वरना आपकी इस तरह की हरकत आप पर भारी पड़ सकती है। खैर मैंने एक बार अपने आप को ऐसे हालात में मजाक कर रहा था करके बचा लिया, लेकिन उसके बदले मार न सही एक नसीहत जरूर मिली कि भई कोई नया जोक सुनाओ ये तो पुराना हो गया है। वैसे 2जी स्पेक्ट्रम, सीवीसी नियुक्ति, कॉमनवेल्थ गेम्स, आदर्श सोसाइटी घोटाला और इस तरह के न जाने कितने घोटालों के वक्त गहरी नींद में सोए रहे प्रधानमंत्री ने एक प्रेस वार्ता में अपनी गलती मान ली और कहा कि मैं दोषी तो हूं लेकिन उतना भी नहीं जितना प्रचारित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री जी, आप बहुत बड़े ईमानदार और पाक साफ छवि वाले इंसान हैं, आप पर कोई उंगली नहीं उठा सकता लेकिन आज तो आपकी तरफ चारों ओर से आम जनता के सिर और हाथ उठ रहे हैं।

अब तो हद हो गई है, सीवीसी और 2जी स्पेक्ट्रम मामले ने प्रधानमंत्री की ईमानदारी पर जो दाग लगाया था उसे विकीलीक्स के ताजा खुलासे ने और भी गाढ़ा दाग बना दिया है। शायद हमारे पीएम साहब को सर्फ का वो विज्ञापन कुछ ज्यादा ही भा गया है, जिसमें कहा गया है कि 'दाग अच्छे हैं'। मनमोहन जी आप ईमानदार हो सकते हैं लेकिन आपकी ईमानदारी पर बट्टा लगाने वाले इन दागों का क्या? एक महापुरुष ने कहा था कि गुनाह सहना भी एक गुनाह है। आज के एक शिक्षाविद् की माने तो 'अगर आपके पड़ोस में किसी पर अत्याचार हो रहा है और आपको नींद आ जाती है तो अगल नंबर आपका है'। श्रीमान प्रधानमंत्री महोदय आपकी नाक के नीचे 2जी घोटाला हो गया और आप यह कह कर बचने की कोशिश करते नजर आए कि राजा ने आपकी बात नहीं सुनी। आपकी इस बात से तो ऐसा ही लगता है जैसे राजा सच में उस समय राजा बन गए थे और आपके उनके दरबार में जी हुजूरी करने वाले दरबान। सीवीसी मामले में भी आपने पामोलीन मामले के बारे में जानकारी नहीं होने की बात कही, जिससे साफ लगता है कि आप ईमानदार तो पता नहीं लेकिन झूठ बोलने में बड़े माहिर हैं। लेकिन मुसीबत यह है कि आपका झूठ पकड़ा जाता है।

अब 2008 में सत्ता बचाने के लिए जिस तरह से 'नोट फॉर वोट' हुआ था, उस समय आप लोगों ने इसे लोकतंत्र के लिए शर्म कहकर संसद में नोट लहराने वाले सांसदों को ही गुनहगार साबित कर दिया था लेकिन विकीलीक्स ने आपकी पोल खोल दी। अब ये कैसी ईमानदारी है श्रीमान कि सरकार बचाने के लिए पैसे देकर एमपी खरीदे और फिर भी ईमानदारी का मेरा रंग दे बसंती चोला। अब मुझे आपकी ईमानदारी पर कोई शक नहीं है, आप जैसी महापुरुष रूपी बिल्लियां इस धरती पर बहुत कम ही पैदा होते हैं जो सौ चूहे खाकर भी हज जाए बिना हज का मजा लेती रहती हैं और फरिस्ते कहलाती हैं वरना तो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज जाने की सोच ही लेती है। आप ऐसा भी नहीं सोचते तो आपमें कोई बात तो होगी, मजे लो इस सत्ता का, पता नहीं कल हो न हो। और हां अभी तो तीन साल और हैं आपकी सरकार के अभी गुंजाइश है आपको ऐसी ही कुछ और ईमानदारियां दिखाने का जिससे हमारी जेबें तो कट जाएं लेकिन आप चोरी करके भी रॉबिनहुड कहलाएं। धन्यवाद

Tuesday, March 8, 2011

अरुणा को इतनी बड़ी सजा क्‍यों?

इच्छामृत्यु की 'गुजारिश' खारिज ये हैडिंग लगाकर हमने भी अपनी पीठ थपथपाई की 'भई वाह! जबरदस्‍त हैडिंग लग गई है, गुजारिश फिल्‍म का नाम भी आ गया जिसमें इच्‍छा मृत्‍यु का विषय है।' लेकिन अरुणा को न्‍याय कब मिलेगा और अरुणा को इतनी बड़ी सजा क्‍यों?

जी हां, मेरा ये सवाल हर उस व्‍यक्ति से है जो अपने आप को बुद्धिमान मानता है और कैपिटल पनिशनमेंट (सजा ए मौत) का विरोध करता है। ये सवाल देश के उन तथाकथित विचारवान (थिंकटैंक) लोगों के लिए भी है जो टीवी स्‍टूडियो में बैठकर या रैलियां निकालकर मौत की सजा का विरोध करते हैं। वैसे मौत की सजा का विरोधी मैं खुद भी हूं लेकिन मैं अपने आप को उन तथाकथित विचारवान लोगों से अलग मानता हूं, ऐसा क्‍यों वो आप आगे समझ जाएंगे। पहले अरुणा शानबाग की बात कर ली जाए, जो पिछले 37 सालों से सजा भुगत रही हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आगे भी वह सजा की हकदार हैं।

अरुणा के केस पर एक नजर-

सुप्रीम कोर्ट ने अब 60 साल की हो चुकी पूर्व नर्स की इच्छामृत्यु की याचिका को खारिज कर दिया। अरुणा के साथ मुंबई के केईएम अस्पताल में 27 नवंबर 1973 को अप्राकृतिक बलात्‍कार (रेप) हुआ था। अरुणा उस समय इसी अस्‍पताल में नर्स के रूप में काम करती थी। सफाईकर्मी ने बलात्‍कार के दौरान अरुणा की गर्दन में कुत्ते को बांधने वाली चेन लपेटकर इसे झटक दिया, जिससे वह कोमा में चली गई। तब से अब तक 37 साल का लंबा समय गुजर चुका है लेकिन अरुणा की बेहोशी नहीं टूटी है।

उस दरिंदे ने अरुणा से बलात्कार करने की कोशिश की, लेकिन यह जानने के बाद कि वह मासिक धर्म से है, उसने अप्राकृतिक दुष्कर्म किया। अरुणा विरोध न कर पाए, इसलिए उसकी गर्दन से चेन लपेटकर उसे झटक दिया। जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद वह मौके से फरार हो गया। बाद में पकड़ा भी गया तो 7 साल की कैद के बाद वह आसानी से छूट गया और अरुणा आज भी सजा भुगत रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मार्कंडेय काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने अरुणा को एक्टिव यूथेनेसिया (ऐसी इच्छामत्यु जिसमें रोगी का जीवन कोई इंजेक्शन इत्यादि देकर खत्म किया जाए) की इजाजत तो नहीं दी। फिर भी असाधारण परिस्थितियों में पैसिव यूथेनेसिया (ऐसी इच्छामत्यु जब रोगी का इलाज बंद कर दिया जाए या उसे जीवनरक्षक उपकरणों से हटा लिया जाए) की इजाजत देने की बात कही।

वापस अपने लेख पर आते हैं-

जिस परोक्ष मृत्‍यु की बात कोर्ट ने की है उसके अनुसार तो अरुण भूख से, सांस न मिलने से और ईलाज की कमी से तड़प-तड़पकर मर जाएंगी। इससे तो बेहतर यही होगा कि उन्‍हें मौत (जहर) का इंजेक्‍शन देकर आसानी से मरने दिया जाए।

एक सवाल- अरुणा को सजा क्‍यों?
अरुणा पिछले 37 सालों से सजा भुगत रही है, जबकि उनकी कोई गलती भी नहीं थी। दूसरी तरफ वो दरिंदा जिसने अरुणा को इस हालत में पहुंचाया वह सिर्फ 7 साल की सजा काटकर आराम से जेल से बाहर आ गया। जैसा कि मैंने पहले कहा था मैं भी सजा ए मौत के खिलाफ हूं, ये किसी दया भाव से नहीं बल्कि मैं ऐसे दरिंदों के लिए इससे भी कड़ी सजा चाहता हूं इसलिए। कोई गलती नहीं होने के बावजूद अरुणा पिछले लगभग 4 दशकों से ये सजा भुगत रही हैं और उनकी तरफ से मौत की भीख मांगी जा रही है। मेरा सवाल कोर्ट और उन तथाकथित विचारवान लोगों से यह है कि उस दरिंदे को ऐसी सजा क्‍यों न मिले कि वह मौत की भीख मांगे और उसे वह भी नसीब न हो। सजा बर्बर जरूर होगी लेकिन गुनहगारों के लिए बिल्‍कुल सटीक, जैसे बलात्‍कार करने वाले का लिंग, दोनों पैर व एक हाथ काटकर छोड़ दिया जाए। मुझसे कई लोग सहमत तो नहीं होंगे लेकिन इस सजा से गुनहगारों के दिलों में खौप बैठ जाएगा। असली सजा तो यही होगी भले ही कोई माने या न माने।

आप ऐसे गुनहगारों के लिए क्‍या सजा चाहते हैं और क्‍या वह सही होगी, अरुणा को अपना करीबी मानकर कृपया अपनी राय जरूर दें।

असल में बीमार कौन है? उत्सव या हम

उत्सव शर्मा, इस नाम से अब हर कोई वाकिफ है। पहले 8 फरवरी 2010 को रुचिका गिरहोत्रा को प्रताड़ित कर उसे आत्महत्या करने पर मजबूर करने वाले हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौड़ पर इनका गुस्सा फूटा। और फिर एक साल शांत रहने के बाद 25 जनवरी 2011 को इन्होंने राजेश तलवार पर हमला कर दिया। जनाब आरुषि-हेमराज हत्याकांड में सीबीआई द्वारा आरुषि के पिता राजेश तलवार पर शक जाहिर करने के बावजूद हो रही देरी से नाराज थे। पहली घटना चंडीगढ़ की सेशन कोर्ट में हुई, जबकि दूसरी घटना गाजियाबाद में सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में। उत्सव के पिता बनारस के बीएचयू में प्रोफेसर हैं और उसने अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआइडी) से एनिमेशन और फिल्म डिजाइनिंग में एमए किया है। उत्सव का नाता अब चार शहरों से है लेकिन इन दो घटनाओं से न तो पहले और न बाद में उसने किसी भी निर्दोष पर हमला किया।

राजेश तलवार पर हमले के बाद उत्सव के वकील, पुलिस, माता-पिता और डॉक्टर सभी उसे मानसिक रोगी बता रहे हैं। माफ कीजिएगा, मेरी राय इस मामले में थोड़ा नहीं बहुत अलग है। खैर मेरी राय बाद में, पहले कुछ और चीजें जान ली जाएं। उत्सव को बाईपोलर डिसआर्डर (मैनिक डिप्रेशन) नाम की बीमारी से ग्रस्त बताया जा रहा है। उत्सव के वकील के अनुसार, इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति अक्सर उत्तेजित व तनावग्रस्त हो जाते हैं। उसे दिल्ली के एम्स या आगरा के अस्पताल में भर्ती कर उसका इलाज किए जाने की बात कोर्ट भी मान गई है। राजेश तलवार पर हमले के बाद उत्सव ने कहा था कि उसने तलवार को चोट पहुंचाने के लिए हमला किया था, न कि उसे मारने के लिए। इसके अलावा उसने यह भी कहा कि महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से वह बेहद परेशान था, इसलिए उसने उन लोगों को सबक सिखाने के लिए यह रास्ता चुना। रुचिका मामले में राठौड़ पर हमला करने से पहले वह इस केस को लेकर काफी परेशान था और इस पर एक फिल्म बनाना चाहता था।

जैसा कि मैंने पहले कहा, उत्सव ने इन दो हमलों से न तो पहले और न बाद में किसी निर्दोष व्यक्ति पर हमला किया। ऐसे में मेरे दिमाग में एक सवाल कौंध रहा है कि असल में बीमार कौन है, और कितना है और फिर उसका इलाज क्या है? क्योंकि उत्सव ने अब तक उन्हीं लोगों पर हमला किया है, जो व्यवस्था की कमी या न्याय की सुस्त चाल के चलते खुले आम घूम रहे हैं। उत्सव को देखकर एक फिल्म याद आती है ‘अपरिचित’। मल्टी पर्सनेलिटी डिस्ऑडर पर बनी इस फिल्म में हीरो जब भी जुर्म होते देखता है, वह अपरिचित बनकर अपराधी को गरुड़ पुराण के अनुसार सजा देता है। उसकी प्रेमिका उसे घास नहीं डालती तो वह रेमो बन जाता है और आम जिन्दगी में वह डरा-सहमा सा रामानुजम उर्फ अम्बी है। उत्सव को बाईपोलर डिसआर्डर नाम की बीमारी से ग्रस्त बताया जाता है। असल में बीमार हमारी व्यवस्था है, जो अपराध रोकने में लगातार नाकामयाब हो रही है। बीमारी हमारी न्याय व्यवस्था व पुलिस प्रणाली में फैल चुकी है, जो अपराधियों को उनके अंजाम तक नहीं पहुंचा पा रही है। ऐसे में एक उत्सव क्या हजारों उत्सव पैदा हो सकते हैं, जो एक दिन अपने हाथों में हथियार थामकर अपराधियों को अपने अनुसार सजा देंगे। वैसे भी हमारे समाज पर बॉलीवुड की खासी छाप है, बॉलीवुड फिल्मों में जब अपराधी न्याय व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हैं और प्रशासन को अपनी जेब में रखते हैं तो एक हीरो सामने आकर अपराधियों को चुन-चुन कर मारता है। राठौड़ पर हमले के बाद एक राष्ट्रीय अंग्रेजी अखबार की वेबसाइट पर Utsav Sharma ban gaya hero? हेडिंग से खबर लगी। मैं उत्सव को हीरो तो नहीं मानता लेकिन मानता हूं कि हम सब कायरों और मानसिक रोगियों के बीच वही एक दिलेर है जो अपने दिल और दिमाग की बात मानता है और अपराधियों के लिए खौफ बनने की राह पर निकल पड़ता है। जितनी तत्परता से उत्सव को गिरफ्तार किया गया या जितनी तेजी से उत्सव ने अपराधियों के खिलाफ अपना फैसला सुनाया है, उतनी ही तेजी से अगर हमारी पुलिस, न्याय-व्यवस्था और हम सब अपराध व अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करें तो इस समाज से अपराध का नामोनिशान मिट जाएगा और अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार अपने अंजाम के बारे में सोचेंगे।
उत्सव के बारे में कुछ जानकारी
30 वर्षीय उत्सव वाराणसी का रहने वाला है और उसने अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइनिंग (एनआईडी) से फिल्म प्रोडक्शन की पढ़ाई की है।
उत्सव तलवार से पहले रुचिका गिरहोत्रा मामले के दोषी हरियाणा के पूर्व डीजीपी एस.पी.एस. राठौड़ पर भी चंडीगढ़ की एक अदालत परिसर में हमला कर चुका है। फरवरी 2010 में उत्सव ने राठौड़ के चेहरे पर चाकू से तीन बार हमला किया था।
चंडीगढ़ स्थित जाट धर्मशाला के मुताबिक उत्सव राठौड़ पर हमले से पहले वहां 40 रुपए प्रतिदिन के किराए पर कुछ दिनों तक रुका था। यह धर्मशाला राठौड़ के घर के करीब ही है।
करीबी लोगों के अनुसार उत्सव रुचिका मामले को लेकर बहुत परेशान था और वह इस विषय पर एक फिल्म बनाना चाहता था।
करीबी लोगों के अनुसार महिलाओं के विरुद्ध होने वाले किसी भी तरह के अपराध पर वह बहुत संवेदनशील हो जाता था और किसी न किसी रूप में उस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करता था।

आप सोच रहे होंगे अब इतनी देर में क्‍यों तो आपको बता दूं लाइवहिन्‍दुस्‍तान के ब्‍लॉग पर उस समय लिखा था लेकिन अपने व्‍यक्तिगत ब्‍लॉग पर पोस्‍ट को टांगने का वक्‍त अब ही मिला है।

यमुना का चीरहरण, लंबा हुआ कृष्ण का इंतजार

आज कई दिनों के बाद लगा कि एक बार फिर से किसी ने यमुना का चीर हरण कर दिया है। जी जनाब! आपने बिल्कुल सही पढ़ा यमुना का चीर हरण। वही यमुना जिसने पिछले दिनों कई लोगों को बेघर कर दिया। अजी वही यमुना जिसने बिना इजाजत के पिछले दिनों दिल्ली में कई लोगों के घरों में घुसपैठ कर दी थी। रौब तो देखिए, बाहर से ताला लगा रहा लेकिन ये फिर भी अंदर दाखिल हो गई। आज यमुना पुल से आईटीओ होते हुए ऑफिस आ रहा था, तो यह हादसा देखा। हादसा! अरे भई ऊपर बता तो दिया कि यमुना का चीर हरण हो गया है। पिछले दिनों जिस तरह से यमुना पानी से लबालब भरी हुई थी उसे देखकर मन हिचकोले खा रहा था। यह ठीक वैसा ही था जैसे किसी महिला ने घूंघट ओढ़ रखा हो और आप उसके दीदार को तरस रहे हों।

आज देखा तो यमुना कई जगहों से नंगी नजर आई। फिर सोचने लगा आखिर इसका चीर हरण फिर से कैसे हो गया। कुछ ही दिन पहले की तो बात है, जब मेघ रूपी श्रीकृष्ण ने इसकी लाज बचाने के लिए अपने सारे घोड़े दौड़ा दिए थे। कृष्ण ने एक बार फिर से यमुना का साथ छोड़ दिया और उसका चीर हरण हो गया। अब देखो कैसे-कैसे दुर्योधन इसको फिर से गंदा करते हैं। कोई इसमें सीवर मिला रहा है तो कोई पूजा के फूल डाल रहा है। कुछ लोग खुद के पाप धोने में इसकी पतली सी धोती को मैला कर रहे हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स के समय विदेशी लोग भी आए यमुना के चीर हरण के नजारे को देखने के लिए। लेकिन उस समय कृष्ण ने काफी हद तक यमुना की लाज बचाए रखी। लेकिन अब तो उसका चीर हरण हो चुका है। आखिर कब आएगा यमुना का कृष्ण जो उसे इस चीर हरण से हमेशा के लिए निजात दिलाएगा?

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गेम्स विलेज को लेकर एक और आइडिया है सरजी!


‘खेल खतम पैसा हजम!’ अरे नहीं, पैसा ऐसे कैसे हजम हो जाएगा? अभी तो मामला तन गया है और हाईकोर्ट तक बात पहुंच गई है जनाब। वैसे हम इस झमेले में नहीं फंसने वाले, हम तो बात करेंगे कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज के बारे में। भई गेम्स तो खत्म हो लिए, इस बार हमारे तीर निशाने पर लगे और गोलियां भी नहीं चूकी। इसलिए ऑस्ट्रेलिया को छोड़ बाकी सबको पटखनी देकर हम अंक तालिका में दूसरे नंबर पर पहुंच गए। अब गेम्स विलेज का क्या होगा, सुना है डीडीए उसे जल्द ही अपने कब्जे में लेकर खरीदारों को न्यौता देने वाला है। सुना है लगभग 1 करोड़ रुपए से एक फ्लैट की कीमत शुरू होती है, और जिसकी अंटी में इतना पैसा हो वह ले उड़े। जरा ठहरिए! हमारे पास एक सुझाव है इस गेम्स विलेज के इस्तेमाल को लेकर।

नेताजी! अरे भई संसद में बैठने वाले अपने सांसद महोदय, उन्हें क्यों न इन फ्लैटों में बसा दिया जाए। सांसद महोदय को वर्ल्ड क्लास सुविधा मिल जाएगी और डीडीए की फ्लैट बेचने की कवायद का झंझट भी खत्म हो जाएगी। वैसे भी हमारे सांसद महोदय सेंट्रल दिल्ली के अलिशान बंगलों में तन्हा रहकर बोर हो चुके हैं, यहां सब साथ-साथ रहेंगे, खेलेंगे, कुदेंगे और ऐश करेंगे और क्या!

इसका एक फायदा यह भी है कि अलग-अलग बंगलों में सुरक्षा देने में देश का ढ़ेर सारा पैसा जो खर्च होता है, वह भी कुछ बच जाएगा। भई देखिए, हमें तो यह आइडिया बिल्कुल ‘व्हाट एन आइडिया सरजी’ वाला आइडिया लगा। बाकी डीडीए व सांसद महोदयों की मर्जी, हमने तो अपनी तरफ से सिफारिश कर दी है। बाकी रही बात जिन बंगलों में अभी हमारे नेताजी लोग रह रहे हैं उनके इस्तेमाल की तो, उनका भी कुछ न कुछ सोच ही लिया जाएगा।

आइडिया तो गेम्स विलेज को छात्रों के लिए हॉस्टल की तरह इस्तेमाल का भी बुरा नहीं है। सुना है ऐसा ही आयोजन समिति ने भी पहले सोचा था। सुना तो यह भी है कि उन्होंने यह भी सोचा था कि इसे हॉस्टल की तरह इस्तेमाल करेंगे और आगे जब भी इस तरह का कोई आयोजन होगा तो फिर गेम्स विलेज का इस्तेमाल कर लेंगे।

बुढ़े नेता या फिर हमारे युवा छात्र बंधु, जो भी हमारे इस आइडिया को भुनाने की कोशिश करेगा, हम उसका पूरा साथ देंगे। अगर युद्ध दो तरफा हो तो मजा ही आ जाए, फिर देखेंगे कि युवा शक्ति जीतती है या नेताजी बाजी मार ले जाते हैं। हम तो ईशारा दे चुके हैं, अब यह आइडिया सही जगह तक पहुंच जाए और कहीं से एक चिंगारी जल उठे तो मजा आ जाए।

आप सोच रहे होंगे अब इतनी देर में क्‍यों तो आपको बता दूं लाइवहिन्‍दुस्‍तान के ब्‍लॉग पर उस समय लिखा था लेकिन अपने व्‍यक्तिगत ब्‍लॉग पर पोस्‍ट को टांगने का वक्‍त अब ही मिला है।