फिर बज उठेगी रणभेरी
फिर से गूंजेगा इंकलाब
फिर से एक नया सवेरा होगा
वतन पर मर मिटने वाला
फिर कोई उठ खड़ा होगा।
एक नये सवेरे की चाहत में
एक नई लौ जल उठी है
उम्मीद की रौशनी से रौशन
जिंदगी अब अपने अतीत से रूठी है
अब तो सूरज उगने वाला है।
अब सूरज उगने वाला है
अब कहीं किसी आतताई की नहीं चलेगी
अब तो मंद मंद पूर्वा चलेगी
उठ खड़े होंगे भारत मां के वीर सपूत
अब भ्रष्टाचारियों की बैंड बजेगी।
Saturday, August 27, 2011
Tuesday, August 23, 2011
देश फिर एक हुआ है
देश फिर एक हुआ है
बेवजह भटक रही जवानी की
रगों में फिर से खून का कतरा बहा है
देश फिर से एक हुआ है।
एक बूढ़े शेर ने दिखाई अपनी जवानी है
आंदोलित कर दिया उसने हिन्दुस्तान को,
हर कोई उठ खड़ा हुआ है आज
हर जुबान पर उसी 'जवान' की कहानी है।
अन्ना डटे हुए मैदान में
दुनिया जिसे देख हैरान है
जन-गण इतना जुट गया कि
बड़े-बड़े सूरमा परेशान हैं।
लक्ष्यहीन हो जवानी भटक रही थी
अन्ना ने एक चिंगारी दी
अब देखेगी दुनिया युवाओं की ताकत
भ्रष्टतंत्र से अब मिलकर रहेगी राहत।
महबूब के हसीन सपने नहीं
महबूबा की बाहों की चाहत नहीं
देश के युवाओं की आज सिर्फ एक चाहत
जन लोकपाल जन लोकपाल।
बेवजह भटक रही जवानी की
रगों में फिर से खून का कतरा बहा है
देश फिर से एक हुआ है।
एक बूढ़े शेर ने दिखाई अपनी जवानी है
आंदोलित कर दिया उसने हिन्दुस्तान को,
हर कोई उठ खड़ा हुआ है आज
हर जुबान पर उसी 'जवान' की कहानी है।
अन्ना डटे हुए मैदान में
दुनिया जिसे देख हैरान है
जन-गण इतना जुट गया कि
बड़े-बड़े सूरमा परेशान हैं।
लक्ष्यहीन हो जवानी भटक रही थी
अन्ना ने एक चिंगारी दी
अब देखेगी दुनिया युवाओं की ताकत
भ्रष्टतंत्र से अब मिलकर रहेगी राहत।
महबूब के हसीन सपने नहीं
महबूबा की बाहों की चाहत नहीं
देश के युवाओं की आज सिर्फ एक चाहत
जन लोकपाल जन लोकपाल।
Monday, August 15, 2011
तख्ता पलट ही एकमात्र रास्ता है
अन्ना के साथ आज पूरा देश है और अन्ना आज हिन्दुस्तान की जनता के रोष का प्रतीक बन गए हैं। शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने की जो कोशिश केन्द्र सरकार कर रही है उसे देखते हुए तो साफ लगता है कि यह सरकार निरंकुश हो चुकी है। ऐसी निरंकुश सरकार को किस तरह से उखाड़कर फेंका जाता है यह हमने हाल ही में मिस्र (इजिप्ट) में देखा है। जो हालात अभी देश के बन रहे हैं उसे देखते हुए सेना (आर्मी) को इस निरंकुश सरकार उखाड़ फेंकना चाहिए। वैसे सेना भले ही ऐसा करे या न करे इस देश की जनता तो ये कर ही देगी। लेकिन इस सरकार को अब एक दिन या एक घंटे भी सत्ता में रहने का हक नहीं है। इसलिए मेरी सेना से गुजारिश है कि वह मिस्र की तरह सरकार को उखाड़ फेंके।
जिस तरह से आज सुबह अन्ना और उनके समर्थकों को गिरफ्तार किया है उसे देखते हुए सरकार की नीयत का पता चलता है। महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने अंदेशा जताया कि अब इस आंदोलन का वह दौर आ गया है जब राजनीतिक पार्टियों के अरातक तत्व उनके बीच घुसकर अराजकता या दंगा फैला दें। क्योंकि अन्ना ने सभी से अहिंसक आंदोलन में शामिल होने को कहा है। उन्होंने किसी भी तरह की हिंसा में शामिल नहीं होने को कहा है। लेकिन कुछ तत्व अब उनके इस आंदोलन को अपने फायदे के लिए या उसे बदनाम करने के लिए ऐसा कर सकते है। तुषार गांधी का यह बयान बेबुनियाद भी नहीं है। जिस तरह से सरकार कार्रवाई कर रही है उसे देखते हुए लगता तो यही है कि सरकार इस जन आंदोलन को दबाने के लिए दंगा तक करवा सकती है।
एक बार फिर कांग्रेस भाजपा को गुजरात दंगों की याद दिला रही है लेकिन उन्हें 1984 के दंगे भी नहीं भूलने चाहिए जो उनके राज में हुए थे। अन्ना को गिरफ्तार करके सरकार ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। अब देश की जनता उनका जो हाल करेगी उससे सरकार खुद भी डरी हुई है इसलिए अब अन्ना को व्यक्तिगत आक्षेप लगाने से मना किया गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने तो अन्ना हो भला व्यक्ति बताते हुए उनकी मांगों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मैं स्वयं अन्ना का समर्थन करती हूं लेकिन जिस तरह का अंदोलन वह कर रहे हैं उसमें कुछ भी अनहोनी हो सकती है। साफ है जिस तरफ तुषार गांधी इशारा कर रहे थे अंबिका सोनी भी वही बात कर रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं की सरकार अन्ना के आंदोलन की आंच को कम करने के लिए समर्थकों के बीच अपने कुछ लोगों को भेजकर अराजकता और हिंसा फैलाने के बारे में सोच रही हो।
Sunday, August 14, 2011
आजादी के दीवाने आज भी हैं
आजादी के दीवाने आज भी हैं
खुले आसमान में पंख पसार
उड़ने की चाह रखने वाले
कुछ परवाने आज भी हैं।
धूप पंख जला देगी तो क्या हुआ
बारिश और हवा उड़ने नहीं देगी
तो क्या हुआ...
अरमानों को पंख लगाने का विश्वास आज भी है।
दुनिया देखेगी एक दिन अपनी भी उड़ान
तो क्या हुआ अभी वक्त लगेगा...
एक दिन पूरी सरगम अपनी होगी
और साज भी अपना होगा।
भारत माता के वीर सपूत
फिर उठ खड़े होंगे,
भ्रष्टों की गिरफ्त से होगा आजाद अपना हिंद
क्योंकि...
आजादी के दीवाने आज भी है।
खुले आसमान में पंख पसार
उड़ने की चाह रखने वाले
कुछ परवाने आज भी हैं।
धूप पंख जला देगी तो क्या हुआ
बारिश और हवा उड़ने नहीं देगी
तो क्या हुआ...
अरमानों को पंख लगाने का विश्वास आज भी है।
दुनिया देखेगी एक दिन अपनी भी उड़ान
तो क्या हुआ अभी वक्त लगेगा...
एक दिन पूरी सरगम अपनी होगी
और साज भी अपना होगा।
भारत माता के वीर सपूत
फिर उठ खड़े होंगे,
भ्रष्टों की गिरफ्त से होगा आजाद अपना हिंद
क्योंकि...
आजादी के दीवाने आज भी है।
Wednesday, August 10, 2011
आज फिर यमुना को मुस्कुराते देखा
आज फिर यमुना को मुस्कुराते देखा
अपनी ही जवानी पर इठलाते देखा
मदमस्त अपनी चाल में बल खाते देखा
पानी से लबालब भरी थी आज यमुना
किनारों पर उछल-कूद कर रही थी आज यमुना
बहारों के दिन लौट आये, गा रही थी आज यमुना
लेकिन...
बीचों बीच एक बड़े से टापू को उसे चिढ़ाते देखा
गंदे पड़े किनारों को उसकी शान में बट्टा लगाते देखा
पुल पर खड़े लोगों पर यमुना पर झूठा सट्टा लगाते देखा
यमुना फिर चली है खुद ही करने अपनी सफाई
रोज नेताओं से मिलती रही इसे दुहाई
आज उसे खुद ही अपनी सफाई में तैनात होते देखा
जिन किनारों पर पसरा रहता था सन्नाटा
उन्हीं किनारों पर आज कल-कल शोर सुना
और सूने पड़े चुके किनारों पर बच्चों-बड़ों-बूढ़ों को आते देखा।
अपनी ही जवानी पर इठलाते देखा
मदमस्त अपनी चाल में बल खाते देखा
पानी से लबालब भरी थी आज यमुना
किनारों पर उछल-कूद कर रही थी आज यमुना
बहारों के दिन लौट आये, गा रही थी आज यमुना
लेकिन...
बीचों बीच एक बड़े से टापू को उसे चिढ़ाते देखा
गंदे पड़े किनारों को उसकी शान में बट्टा लगाते देखा
पुल पर खड़े लोगों पर यमुना पर झूठा सट्टा लगाते देखा
यमुना फिर चली है खुद ही करने अपनी सफाई
रोज नेताओं से मिलती रही इसे दुहाई
आज उसे खुद ही अपनी सफाई में तैनात होते देखा
जिन किनारों पर पसरा रहता था सन्नाटा
उन्हीं किनारों पर आज कल-कल शोर सुना
और सूने पड़े चुके किनारों पर बच्चों-बड़ों-बूढ़ों को आते देखा।
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